मरने के बाद हुई अदालत
जिसमें दुष्टों की हुई हज़ामत
तभी एक जीव आया
जिसे देख चित्रगुप्त का मन हर्षाया
हौले-हौले यम से बोले
इस जीव ने पृथ्वी पर अच्छा कर्म किया है
मानव रूप में यह सदैव दूसरों के लिए ही जिया है
ऐसे जीव मानवरूप में अजर होने चाहिए
सदैव के लिए अमर होने चाहिए
ये पृथ्वी पर अच्छे कर्म करेंगे
हम देवों का कुछ बोझ कम करेंगे
यमराज को चित्रगुप्त की बात जच गई
गहराई से मन में रच गई
बोले, “हम इस जीव को ईनाम देंगे,
मानव रूप में अजर-अमर होने का वरदान देंगे”
जीव ठिठका और बोला,
“हे देव यह क्या अनर्थ कर रहे हैं
क्यों यह कार्य व्यर्थ कर रहे हैं
मैं अमर नहीं होना चाहता
जीने - मरने का स्वाद नहीं खोना चाहता”
यमराज विस्मित हो बोले,
“यह व्याध क्या है?
यह जीने और मरने का
स्वाद क्या है?”
तब जीव ने समझाया,
“हे यमराज मानव रूप में
जब भी मैं नया जन्म लूँगा
अपनी माँ की गोद में झूलूँगा
उसका अमृत से भी मीठा दूध पियूँगा
और उसकी लोरी सुनते हुए
अपने बचपन को जियूँगा
मेरे पिता मेरी ऊँगली पकड़कर
मुझे जीवन की राह दिखाएँगे
मेरे भाई, मेरी बहनें
मुझमें नया उत्साह जगाएँगे
मेरी पत्नी और मेरे बच्चे
मुझमें जीने की चाह जगाएँगे
धीमे-धीमे जीवन चक्र कट जाएगा
और यह जीव हर बार
चैन की नींद सो जाएगा”
यमराज ने विचार किया
सिर खुजाते बार-बार किया
“मानव नश्वर है यह कटु सत्य है
जीना और मारना मानव का कृत्य है
ब्रम्हा की सृष्टि से छेड़छाड़ ठीक नहीं
ऐसा करना इस यमलोक की रीति नहीं
पर हम इस जीव को सम्मान देंगे
पृथ्वी पर नवजीवन का वरदान देंगे
ताकि यह अपनी माँ का
अमृत से भी मीठा दूध पी सके
और अपने पिता, भाई, बहन
पत्नी व बच्चों संग जी सके
तथा कर्म करें कुछ अच्छे
जिससे मानव बनें सच्चे
बजने वाले चार हैं
चलो चित्रगुप्त अपने चाय के विचार हैं.”
लेखक- सुमित प्रताप सिंह
Sumit Ji
ReplyDeleteYamraj ki adalat men aapane jo kahana chaha hai yadi sabhi log samajh jayen to is dharati par bas Pyar hi Pyar hoga koi kisi se naraj nahi hoga. Kas aapaki kavita ka bhav log samajh pate....
आप और आप जैसे कुछ विद्वान बंधु इस कविता का भाव समझे हमारे लिए ये ही बहुत है. शुक्रिया...
Deleteachhi kavita hai, -om sapra, delhi-9
ReplyDeleteM 9818180932
शुक्रिया ओम सपरा जी...
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