क्या हूँ मैं
अपनों की आस हूँ
माँ ममता हूँ
पिता के कन्धों का सहारा हूँ
आखिर क्या हूँ मैं
जी करे छोड़ दूँ खुद को
खुला उड़ता सपनों के आसमान में,
क्या पता कब तक हूँ मैं
आखिर क्या हूँ मैं
कहाँ जायेगा मन का पंछी,
दुनिया तो एक छोटा सा पिंजरा
जहाँ कैद हूँ हर पल शायद
इसमें ही मन मेरा ठहरा
आखिर क्या हूँ मैं
रंग दूँ जीवन के इस कोरे कागज को,
ये कागज तो एक दिन जलना है
समय के झंझावातों में न खोऊँ
अब जीवन के संग चलना
अब लगे कि जो भी हूँ
बिलकुल अच्छा हूँ मैं।
कुलदीप सिंह राठौड़
नागौर, राजस्थान
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