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Sunday, August 9, 2015

क्या हूँ मैं

क्या हूँ मैं 
अपनों की आस हूँ 
माँ ममता हूँ 
पिता के कन्धों का सहारा हूँ 
आखिर क्या हूँ मैं 

जी करे छोड़ दूँ खुद को 
खुला उड़ता सपनों के आसमान में,
क्या पता कब तक हूँ मैं
आखिर क्या हूँ मैं 

कहाँ जायेगा मन का पंछी,
दुनिया तो एक छोटा सा पिंजरा 
जहाँ कैद हूँ हर पल शायद 
इसमें ही मन मेरा ठहरा 
आखिर क्या हूँ मैं 

रंग दूँ जीवन के इस कोरे कागज को,
ये कागज तो एक दिन जलना है 
समय के झंझावातों में न खोऊँ 
अब जीवन के संग चलना 
अब लगे कि जो भी हूँ 
बिलकुल अच्छा हूँ मैं। 

कुलदीप सिंह राठौड़

  
नागौर, राजस्थान 

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