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Wednesday, October 24, 2012

कविता: रावण नहीं जलाएँ रावणपन

चित्र गूगल बाबा से साभार 
दशहरा अर्थात दशानन रावण हार के मरा 
अपने मरण दिवस पर
रावण के संग कुंभकर्ण व मेघनाद 
पुतलों के रूप में खड़े-खड़े कर रहे थे विलाप 
राम और लक्ष्मण उनपर
बाणों की वर्षा करने को हो रहे थे तैयार
लेकिन हम जानना चाहते थे
राम व रावण पर जनता के विचार
हमने वहीं खड़े एक सेठ जी से जा पूछा,
"राम ने रावण को क्यों मारा? लाला जी कुछ कहिए."
सेठ जी इतरा कर बोले,"रावण था बड़ा घमंडी 
इसीलिए राम से मारा गया पाखंडी."
इतना कहकर सेठ जी ने अपने बगल में खड़े
एक फटेहाल मानव को घूरा और
अपने शाही कपड़ों पर इतराते हुए भीड़ में गुम हो गये
हमने दाढ़ी खुजाते एक सरदार जी को जा पकड़ा 
और उनसे भी पूछा, "पाजी राम ने रावण नूं क्यूँ मारा?"
सरदार जी बोले, "ओये पापे रावण वडा अत्याचारी था.
राम ने ओनु मार के ठीक कीता."
तभी एक शरारती नन्हें बच्चे ने
उनके जूते का खोल दिया फीता
सरदार जी ने उसके जोरदार झापड़ मारा 
बेहोश होकर गिर गया वह बच्चा बेचारा 
बच्चे के मुँह से निकलने लगा खून 
सरदार जी भी डर के मारे भीड़ में हो गये गुम 
अबकी बार हमने टोपी संभालते मुल्ला जी से जा पूछा 
"जनाब क्या आप बतायेंगे कि राम ने रावण को हलाक क्यों किया?"
मुल्ला जी अपना पान से भरा मुँह खाली करते हुए बोले, 
“हुज़ूर जहाँ तक हमने अपने हिंदू दोस्तों से सुना है कि
रावण था बड़ा लालची और करता था लंका पर राज 
उसकी चाहत से हिलने लगा था इंद्र का तख्तोताज 
जनाब राम ने उसे मारकर ठीक किया
उसके तख़्त को छीनकर मियाँ विभीषण को दिया”
यह कहते- कहते मुल्ला जी की नज़र
अपने पैर के बगल में पड़े एक रुपये के सिक्के पर पड़ गयी
वहीं मुल्ला जी की नीयत बिगड़ गई
जूता ठीक करने के बहाने नीचे झुके
और रुपया उठाने के बाद वहाँ एक पल भी न रुके
हम पीछे मुड़े तो देखा कि
गले में बड़ा सा क्रास लटकाये एक महाशय खड़े थे
उनके नैना रावण के पुतले पर गड़े थे
उनका नाम पूछा तो बताया "मि.जान"
हमने उनसे पूछा, "श्रीमान राम द्वारा रावण के 
संहार के विषय में कुछ कहेंगे या ऐसे ही चुप रहेंगे."
तो मि. जान बोले,रावण बहुत बड़ा स्टुपिड था
वह अपने पैलेस में ढेर सारी क्वीन्स पालता था
फिर भी दूसरे की लेडी पर बुरी नज़र डालता था
राम वाज ए गुड मैन
उन्होंने रावण को फिनिश करके ठीक किया"
इतना कहने के बाद मि. जान एक कन्या को ताकने लगे 
आँखों ही आँखों से उसका फिगर मापने लगे 
उन सभी के ये विचार जानकर 
हुआ मन में क्षोभ और आया बहुत क्रोध
रावण की हार को हम मानते हैं
अच्छाई की बुराई पर जीत 
लेकिन भूलने लगे हैं
श्री राम के इस देश की रीत
घमंड, अत्याचार, लालच व बुरे विचार
बसने लगे हैं मन में और भूलने लगे सद्विचार 
रावण का पुतला जलाने के साथ-साथ
आइए हम सभी रावणपन को भी जलाएँ
और श्री राम के आदर्शों को अपनाकर
भारत में फिर से राम राज्य को ले आएँ...
लेखक- सुमित प्रताप सिंह 






6 comments:

  1. एक अच्‍छी रचना पढ़ने को मिली। हर आदमी के अंदर एक रावणत्‍व है। इसका संहार आवश्‍यक है।

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  2. ek sunder bhaw liye behad khoobsurat rachna bahoot pasand aayee ,sunder sandesh de rhi hai ,ravan ko nhi apne ander bse ravan pan ko jlayen,sumit ji sunder likhne ke liye badhai ho,

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    Replies
    1. शुक्रिया अमर जी...

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    2. Aap ki kavita Adhbhut hai, Lakin "hum per Asar Nahi Hota" Aisha Subka Haal Hai

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    3. शुक्रिया गौतम जी!
      प्रयास कीजिए. वैसे भी कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती...

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