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Wednesday, May 1, 2013

कविता: मज़दूर


राम-राम साब मैं मज़दूर हूँ
मज़दूर यानि कि मजे से दूर
मेरी एक दूसरी भी है परिभाषा
मज़दूर होता है वो
जिसकी बाकी न बचती कोई अभिलाषा
जीवन उसका होता
केवल हताशा भरी निराशा                
अपनी साथी है मेहनत
और जेवर है पसीना
हाड़-तोड़ मेहनत के बल ही
पड़ता है हमें जीना
फिर भी देखिए
हम रहते अनाड़ी के अनाड़ी
ठेकेदार ताल ठोंककर
छीन लेता है अक्सर दिहाड़ी
आधा पेट खाना और बाकी आधा
भरती है ई ससुरी बीड़ी
इन हालातों को ही सहते - सहते
बीत गई जाने कितनी पीढ़ी
अब आप पूछेंगे कि
कैसी है अपनी जोरू
अजी वो बेचारी कोल्हू के
बैल की तरह
दिन-रात पिरती रहती है
कभी अपने घर में
तो कभी सेठ जी के घर में
आपको मेरा वचन खल रहा है
पर सोचिए इस बहाने ही सही
मज़दूर का वंश तो चल रहा है
वरना इस अधभूखे शरीर में
भूख के शुक्राणुओं के सिवा
कुछ बचता भी है
अरे साब आपकी आँखें तो
आँसुओं से नम हो गईं
अजी हमारी आँसुओं की नदी तो
जाने कब की
इन आँखों में ही गुम हो गई
चलिए छोड़िये ये तो बताइये
कैसी लग रही है ये इमारत
इसे बनाने के लिए हमने की है
मेहनत से दिन-रात इबादत
जब ये सज-धजकर
पूरी तरह तैयार हो जायेगी
तब जाने इसको हमारी याद
आएगी या न आएगी
और हमें भी कहाँ होगी
फुरसत इसे याद करने की
क्योंकि हम तो लगे होंगे
किसी और इमारत को संवारने में
अपने खून-पसीने से सींचते हुए
उसे दुल्हन की तरह निखारने में
सुबह से शाम तक
थकान से होकर चूर
क्योंकि साब हम तो ठहरे मज़दूर  
मज़दूर यानि कि मजे से दूर।

रचनाकार: सुमित प्रताप सिंह 

इटावा, नई दिल्ली, भारत 
मज़दूर का चित्र गूगल बाबा से साभार 

11 comments:

  1. अप्रतिम !
    अनुपम !
    अद्वितीय !
    अद्भुत !
    The way u write I've always admired.
    —आपका
    अंकित गुप्ता 'अंक '

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    1. शुक्रिया अंकित गुप्ता जी...

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  2. मर्मस्पर्शी रचना एवं सुन्दर अभिव्यक्ति !!

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  3. मजदूर दिवस पर सुन्दर रचना .........

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    1. शुक्रिया अरुणा जी...

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  4. वैसे भईया आपने अपनी कविता मेँ स्तरीय हिन्दी व देशज शब्दोँ के बहुत ही खूबसूरत घालमेल को सर्वहारा वर्ग की व्यथा से जोडकर बेहद मर्मस्पर्शी बना दिया है।

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    1. शुक्रिया अंकित. अब अपन ठहरे देशी इंसान तो अपने इर्द-गिर्द बिखरे शब्दों को रचना में समेत देते हैं...

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. मजे से दूर ... वाह ! क्या बात है .

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    1. शुक्रिया निवेदिता श्रीवास्तव जी...

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