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Tuesday, April 30, 2013

सृजन से ने किया काव्य गोष्ठी का आयोजन



    सृजन से त्रैमासिक पत्रिका के तत्वाधान में गत 28 अप्रैल, 2013 साहिबाबाद गाजियाबाद में काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ।  दोपहर बाद शुरू हुई इस गोष्ठी में दिल्ली एन. सी. आर. के अनेक कवियों ने शिरकत की। गोष्ठी का शुभारम्भ मुख्य अतिथि व वरिष्ठ उपन्यासकार जयप्रकाश डंगवाल व गोष्ठी अध्यक्षता कर रहे गीतकार महेश सक्सैना ने दीप प्रज्जवलित कर किया। देर रात तक चली इस गोष्ठी को उपस्थित कवियों ने अपने सुमधुर कविता पाठ से, उसके चरम तक पहुँचाया । 

       सर्वप्रथम कविता पाठ करते हुए अम्बर जोशी ने ग़ज़ल की मिज़ाज़ पर कलम तेज करते हुए कहा-

"जहन में जब भी खलल हो तो ग़ज़ल होती है
सामने कोई ग़ज़ल हो तो ग़ज़ल होती है 
एक सा वक्त अगर हो तो कहे क्या कोई
वक्त में रद्दोबदल हो तो ग़ज़ल होती है।’’

वर्तमान परिपेक्ष व सत्ता पर तीखा प्रहार कवि, गीतकार मोहन द्विवेदी अपने व्यंग्य मिश्रित अंदाज में इस तरह करते नजर आए -

बची न कौड़ी जेब में, मिला न खोठा दाम। 
दाव चलाती सोनिया, मनमोहन बदनाम।।

महानगर की कुंठा व यंत्रवत जीवन से उदिग्न जयप्रकाश डंगवाल की सशक्त लेखनी कविता का रूप कुछ इस तरह लेती है-

महानगर तेरी बंद कोठरी में ,
ऐसे बीत रहा जीवन ,
जैसे किसी बडी जेल में ,
एक युवा कैदी का यौवन।

पत्रिका की संपादिका व कवियत्री मीना पाण्डे ने भ्रष्टाचार व भ्रष्ट नेताओ को आडे हाथों लेते हुए कहा-

लोकतन्त्र झूठ बना ,
सदन अखाडा है ,
इन सफेद पोशो ने ही ,
देश को बिगाड़ा है।

महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में डॉ. जयशंकर शुक्ल का स्नेह और चाहतो की बात करना सुखद लगता है -

आपकी याद में मन सुमन खिल गया।
याद में मीत का आगमन मिल गया।
चाहतों में हद्य गुनगुनाता रहा। 
देह को स्नेह का आचमन मिल गया।

गीतकार चन्द्रभानु मिश्र समय की विदुप्रताओं की ओर इशारा करते हुए कहते है-

चारों ओर आग की लपटे, मचा हुआ कोहराम जी।
अगर चुप रहे इसी तरह हम, क्या होगा परिणाम जी। 

आधुनिकता व पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण पर हास्य का पुट लिए दिनेश दुबे ’निर्मल’ की कविता ने खुब गुदगुदाया-

पके हुए सिर के बालों पर काला रंग चढ़ाती है।
झुररी पडे गालों पर मलमल क्रीम लगाती है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष महेश सक्सैना ने अपनी कलम की धार से श्रोताओं कों यूं मंत्र मुग्ध कर दिया-  

इधर जलाना उधर बुझाना,
तुम्हारी हरकत सही नही है,
मेरी वफ़ा को ज़फा बताते, 
तुम्हारी तुहेमत सही नही है। 


बतौर मुख्य अतिथि डंगवाल ने पत्रिका के प्रयासो की सराहना करते हुए कहा कि विगत कई वर्षो से पत्रिका इस तरह की गोष्ठियों का आयोजन समय-समय पर करती आ रही है। अन्त में पत्रिका सृजन से की संपादिका  ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर आमंत्रित कवियों को सम्मानित किया तथा कवियों का आभार व्यक्त करते हुए इस तरह की गोष्ठियों व सृजन से पत्रिका के माध्यम से साहित्य व कला की अनवरत सेवा करते रहने की बात दोहराई। सुमधुर गीत व गज़लों से सराबोर इस गोष्ठी में देर रात तक श्रोताओं को बाँधे रखा। गोष्ठी का कुशल संचालन गीतकार डॉ. जयशंकर शुक्ल ने किया। कार्यक्रम में अवनीश शर्मा, कैलाश पाण्डे , नीता डंगवाल,चंचल सेकिया आदि लोग उपस्थित थे।  

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!