रिद्म मंदिर के देव कक्ष में बैठी हुई बुदबुदा रही थी, “दुनिया कहती है कि तुम पत्थर हो और पत्थर कभी भी कुछ सुनते या महसूस नहीं कर सकते, लेकिन मेरी बिन कही बातों को तो तुम कैसे सुन लेते हो ? मेरी उलझनों और परेशानियों को कुछ पलों में ही सुलझा देते हो । गलत राह पर जाने से पहले ही मुझे रोक लेते हो । चाहे तुम मुझे दिखाई न दो पर मैं तुम्हें अपने आस-पास महसूस करती हूँ । चाहे मैं तुमसे लाख शिकायत करती रहूँ कि तुम मेरी विनती नहीं सुनते या फिर मैंने तुमसे जो माँगा तुमने मुझे नहीं दिया पर ये भी सच है कि तुमने मुझे हमेशा मेरी उम्मीद से ज्यादा ही दिया है । लोग कहते हैं कि तुम भगवान नहीं पत्थर की केवल एक निर्जीव मूरत भर हो । पर मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम पत्थर रूप में भी सजीव मानवों के निर्जीव हृदयों के संसार में सजीव रूप में मौजूद हो । जाने मैं ठीक हूँ या फिर तुम्हें पत्थर मानने वाले वो लोग ।"
इतना कहकर रिद्म भगवान की मूर्ति के आगे आशीर्वाद लेने के लिए नतमस्तक हुई तो मूर्ति के हाथ में सजा फूल रिद्म के हाथ में आकर गिरा । रिद्म फूल को अपने हाथों में पाकर प्रसन्न हो उठी । शायद उसे उसके प्रश्न का उत्तर मिल चुका था ।
लेखिका : संगीता सिंह तोमर
*चित्र गूगल से साभार
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