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Monday, December 1, 2014

दिव्या माथुर के उपन्यास 'शाम भर बातें' का लोकार्पण

बाएँ से दाएं: भगवान श्रीवास्तव 'बेदाग़', नरेश शांडिल्य, दिव्या माथुर, असगर वजाहत, कृष्णदत्त पालीवाल, कमल किशोर गोयनका, अजय नावरिया, लीलाधर मंडलोई, अनिल जोशी, अलका सिन्हा एवं डॉ. प्रेम जनमेजय

नई दिल्ली : 26 नवंबर, 2014, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्सी. अक्षरम और वाणी प्रकाशन के एक संयुक्त आयोजन में ब्रिटेन की लेखिका दिव्या माथुर के उपन्यास 'शाम भर बातें' का लोकार्पण बड़ी धूमधाम के साथ संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता विख्यात हिंदी लेखक, शिक्षाविद, भाषाविद एवं प्रेमचंद मर्मज्ञ डॉ कमल किशोर गोयनका, केन्द्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष, नेकी और लोकार्पण भारतीय ज्ञानपीठ के निर्देशक डॉ. लीलाधर मंडलोई ने। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध नाटककार और लेखक प्रोफेसर असगर वजाहत, सान्निध्य मिला डॉ. कृष्ण दत्त पालीवाल का. वक्ता थे वरिष्ठ साहित्यकार एवं व्यंग्ययात्रा के सम्पादक डॉ. प्रेम जनमेजय, प्रवासी दुनिया के सम्पादक और लेखक अनिल जोशी एवं लेखक और जामिला मिलिया इस्लामिया में हिन्दी के प्राध्यापक अजय नावरिया। युवा अभिनेता संकल्प जोशी ने उपन्यास के अंश का नाट्य पाठ पूरे उतार-चढ़ाव के साथ किया। जानी मानी लेखिका अलका सिन्हा का संचालन उत्कृष्ट रहा। यह कार्यक्रम वातायन साहित्य संस्था,लन्दन एवं प्रवासी दुनिया के सौजन्य से संपन्न हुआ।
अपने वक्तव्य में डॉ. प्रेम जनमेजय ने कहा कि दिव्या जी की भाषा में विविधता है, प्रत्येक पात्र के अनुसार भाषा और चरित्र चित्रण किया गया है। भारतीय उच्चायोगों और दूतावासों के क्रिया कलापों पर उनकी टिप्पणी तल्ख़ है। उनकी आब्सरवेशन-पावर बहुत प्रभावी है। अजय नावरिया ने कहा कि यह उपन्यास एक विनोदपूर्ण ट्रेजडी है, किन्तु यह केवल ऊपर से विनोदपूर्ण है; उसके भीतर एक व्यथा कथा है। इसमें व्यक्ति मनोविज्ञान का कुशल चित्रण है और दिव्या जी ने पुरूषों की मानसिकता का बड़ा सटीक चित्रण किया है। 
डॉ. कृष्ण दत्त पालीवाल ने कहा कि उन्होंने उपन्यास पर केवल एक सरसरी दृष्टि डाली है, किन्तु उनके विचार में इसमें कोई बौद्धिक चिंतन नहीं है; केवल सपाटबयानी है किन्तु डॉ. असगर वजाहत ने पालीवाल जी से असहमति प्रकट करते हुए कहा कि जीवन स्वयं अपने आप में विमर्श है; कोई भी लेखक को यह नहीं बता सकता कि वह क्या लिखे, कैसे लिखे। दिव्या जी के विमर्शों को देखने के लिए सही आँख चाहिए। डॉ. लीलाधर मंडलोई ने भी डॉ. पालीवाल से असहमति प्रकट की और कहा कि यह उपन्यास बदलाव का दस्तावेज़ है। अगर लेखक पालीवाल जी के सुझाव मानना तो यह उपन्यास दो कौड़ी का होता। उन्होंने कहा कि दिल्ली के उच्च वर्ग में भी वही स्थितियां हैं जो कि इस उपन्यास में वर्णित की गयी हैं; यहां की फार्म हाउस की पार्टियां भी ऐसी ही 
होती हैं। कथावस्तु के मानदंडों में अंतर आ चुका है। जैसे कि विनोद शुक्ल की नौकर की कमीज़ आदि कहानियां कथा तत्व के रूढ़िवादी ढांचे से बाहर हैं। अनिल जोशी ने कहा कि कथात्तत्व की अवधारणाएं बदल चुकी हैं। उपन्यास के केन्द्र में समूचा प्रवासी समाज है। लेखिका की व्यक्ति मनोविज्ञान व सामाजिक मनोविज्ञान पर गहरी पकड़ है। उन्होंने प्रवासी समाज के विभिन्न वर्गों को प्रामाणिक और प्रभावी चित्रण किया है। दिव्या माथुर प्रयोगधर्मी उपन्यासकार है। उनकी कहानी 'पंगा' ऐसा ही एक सार्थक प्रयोग है। इसी क्रम में 'शाम भर बातें' एक आस्कर विजेता फिल्म की तरह लगता है। दिव्या जी ने सामाजिक, पारिवारिक जीवन, हिंदी की समस्या, नस्लवाद, संस्कृति का खोखलापन, भारतीय दूतावास के अधिकारी, टूटते हुए परिवार इत्यादि बहुत सी समस्याओं को उकेरा है। अभिमन्यु अनत की कहानी 'मातमपुर्सी' का ज़िक्र करते हुए डा गोयनका ने बताया कि प्रेमचंद की कहानियों में भी प्रवासी जीवन का चित्रण रहा है। 'नीली डायरी' का उद्धरण देते हुए, उन्होंने दिव्या जी की सृजनात्मक क्षमता की प्रशंसा।
इंडिया इन्टरनैशनल सेंटर के खचाखच भरे हौल में विदेश से आए हुए बहुत से मेहमान भी सम्मलित थे - डॉ. अचला शर्मा, सुभाष और इंदिरा आनंद, कमला दत्त, अरुण सब्बरवाल, जय और महीपाल वर्मा एवं जय विश्वादेवा। विशिष्ट अतिथियों में शामिल थे श्री वीरेन्द्र गुप्ता, सुश्री पद्मजा, नासिरा शर्मा, हरजेन्द्र चौधुरी, रमा पांडे, अमरनाथ वर्मा, शाहीना ख़ान, सीतेश आलोक, नरेश शांडिल्य, सीतेश आलोक इत्यादि।


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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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