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Thursday, July 19, 2012

कविता : अभी सिर्फ बिल्ली भागी है


बिल्‍ली आयी बिल्‍ली आयी
दौड़ भागकर दिल्‍ली आयी
खेल रहा था लगातार
एक चूहा देखा सड़क पार

आया उसके मुंह में पानी
झट से अपनी मूंछें तानी
तड़प रही थी भूख की मारी
लेकिन क्‍या करती बेचारी

मोटर गाड़ी कार सवार
सबकी खूब तेज रफ्तार
चले सड़क पर भीड़ अपार
बिल्‍ली कैसे जाए पार

बिल्‍ली के मन में छाई उदासी
खड़ी रही वो भूखी प्‍यासी
ढलते-ढलते हो गयी शाम
नहीं बना खाने का काम

थककर हारी हो गयी बोर
भाग गयी जंगल की ओर
अब न बात बनाएं हम
आओ सब जग जाएं हम

यातायात घटाना अब तो
हम सब की भी है जिम्‍मेदारी 
वरना भागी अभी तू बिल्ली 
आगे हम सबकी है  बारी...

1 comment:

  1. कविता के माध्यम से आपने बिल्कुल सही चिन्हित किया, कि यदि हम नहीं सुधरे तो आगे हम सबकी भी बारी आ सकती है...

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!