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Saturday, July 21, 2012

दोस्ती का क्रिकेट या क्रिकेट से दोस्ती


    के युग में खेलों का महत्व लगातार बढ़ रहा हे.फिर वो चाहे दोस्त बनाने के लिए हो या रिश्तों की नई परिभाषा बनाने में,जैसा कि वर्तमान में हो रहा है. आज हमारे समाज में खेलों को नया स्वरुप मिला है.पहले खेलों को योग्यता का माप नहीं माना जाता था.आज हम खेलों और खिलाडियों को भगवान का दर्ज़ा देते हैआज सभी खेलों को महत्व दिया जाता है. हमारे देश में तो अन्य खेलों की तुलना में क्रिकेट की तूती बोलती है.क्रिकेट को सभी धर्म,जाति,संप्रदाय से ऊपर सम्मान मिलता है.क्रिकेट खिलाडियों को भगवान जैसा दर्ज़ा प्राप्त है.उनकी एक झलक पाने को लोग उसी तरह उमडते है जैसे शिरडी या वैष्णों देवी के मंदिरों में भीड़ का जमावडा  रहता है. कुछ समय पहले हमारे देश में अचानक आतंकी हमलों का ऐसा सैलाब आया जिसने हमारे देश को झकझोर दिया. हम ये समझ ही नहीं पा रहे थेकि कौन हमारे देश की शांति और सौहार्द का दुश्मन बन गया हैफिर धीरे-धीरे हमने अपने  पडोसी देशों को भी इससे अवगत करायापर तब हम इस सच्चाई से अनभिज्ञ थे, कि हमारा ही एक पडोसी मित्र देश इस साजिश का सर्वेसर्वा है. इन आतंकी हमलों में हमारे लोकतन्त्र के मंदिर संसद भवन पर हुआ आत्मघाती हमला जिसमे अनेक जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे के अनेक राजनेताओं, केंद्रीय मंत्रियों के प्राणों की रक्षा कीइस घटना ने  पूरे देश की नीव हिला दी.केवल ये ही एक मात्र हमला नहीं हुआ बल्कि मुंबई में समुद्री रास्ते से हुआ हमला. जिसमे मुंबई की महत्वपूर्ण जगहों को निशाना बनायाउनमे प्रमुख है ताज होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल,ट्राइडेंट होटल.जिसमे अनेक मुंबई पुलिस के जवान शहीद हो गए जिनमे हेमंत करकरेविजय सालस्कर प्रमुख थेइस तरह के हमलों ने देश की आर्थिक स्थिति को भी कमजोर कर दियामुंबई पुलिस ने अपने जवानों के प्राण खोकर एक मात्र ज़िंदा  आतंकी आमिर अजमल कसाब को गिरफ्तार कियाउस आतंकी ने अपने बयान में कबूला, कि उसे आतंकी हमले की सारी ट्रेनिंग पाकिस्तान में मिली ये जानकारी पाते ही भारतीय सरकार ने पाकिस्तान की सरकार जो सारी जानकारी दे  के, इस हमले के मास्टर माइंड को भारत को सौपने की बात कही तब पाकिस्तान ने अजमल कसाब के पाकिस्तानी होने की बात को सिरे से नाकारा. और उस हमले के मास्टर माइंड के भी पाकिस्तान में होने से इनकार किया और आज तक इस मामले में कथनी और करनी में अंतर के आदर्श पर खरा उतर रहा हैजबकि आज अलकायदा जैसे संगठन का शिकार वो खुद भी है.पर जहाँ तक हमारे देश को इस बारे में मदद का प्रश्न है आज भी वही पुराना दोस्ती का राग अलाप रहा हैआज पाकिस्तान में दुनिया भर के कोई भी देश किसी भी खेल प्रतियोगिताएं में शामिल होने से इंकार कर रहे है. इसका कारण वहाँ पर हुई एक क्रिकेट प्रतियोगिता श्रीलंका क्रिकेट टीम पर हुआ आतंकी हमला हैजिसमे इस टीम के कई खिलाडी घायल हुए थेजो काफी समय बाद मैदान पर खेलने की तैयारी कर पाए हैआज अगर पाक में कोई भी देश जाना नहीं चाहता, तो उसके पीछे आतंकवाद को लेकर पाक का ढुलमुल रवैया जिम्मेदार है, पर एक बार फिर भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट सीरीज़ की शुरुआत दिसम्बर होने जा रही है. जहाँ एक ओर भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की इस पेशकश का विरोध हो रहा है वही दूसरी ओर इस प्रयास की सराहना भी हो रही हैविरोध के बावज़ूद इस के बारे में अंतिम फैसला तो भारत सरकार को लेना हैदेखना दिलचस्प होगा कि सरकार राजनीतिक और सभी ओर से हो रहे विरोध के बीच क्या कदम उठती हैइन स्थितियों में पाकिस्तान के रुख पर भी गौर करना होगा. कि वो इस सन्दर्भ में क्या प्रतिक्रिया देता क्या वो हमें आतंकवाद के मामलों में सहयोग देता है या हमेशा की तरह सिर्फ वादा कर के बाद में उस वादे को तोड़ कर हिंदी  फ़िल्मी गाने की पंक्तियों "कसमे वादे प्यार वफ़ा सब
बाते है बातों का क्या,
कोई किसका नहीं यह
 झूठे नाते है नातों का क्या"......  को सार्थक करता है.
पर आज हम दोनों देशों के नागरिक ईश्वर से यह दुआ मांगते हैं, कि यह मित्रवत शुरुआत  अब तक के सारे गिले शिक्वे दूर कर देगी और एक बार फिर खेल के माध्यम से दोस्ती के रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे और क्रिकेट दोस्ती के खेल के रूप में फलेगा  फूलेगा और नए आयामों की ऐसी श्रंखला बनाएगा जो  सदियों तक सभी को प्रेरित करती रहेगी................

4 comments:

  1. मनीषा जी सांप को चाहे जितना दूध पिलाओ वह काटने से भला कहाँ बाज आने वाला है. फिर भी भारत ने शान्ति प्रयास का जो ठेका ले रखा है उसे निभाना भी तो जरूरी है...

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  2. हमें तो क्रिकेट के नाम से ही एलर्जी है.वैसे भी अपनी सेहत इस खेल को खेलने की इजाज़त नहीं देती. फिर भी आपका यह लेख पढ़ा और पसंद किया.

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!