जब तक तेल है
दीपक में
बाती भी जलती है,
पतंगे भी चारों ओर मंडराते हैं,
रोशनी की परछाईं भी
नाचती
और बतियाती हैं चारों ओर.
लेकिन
दीपक का तेल
जब चुक जाता है,
पतंगे उड़ जाते हैं
कहीं और,
रोशनी की अठखेलियाँ भी
छुप जाती हैं
अँधेरे की बाँहों में.
स्नेहहीन दीपक
रह जाता है
अकेला
ढूँढने अपना अस्तित्व
अँधेरे में.
कैलाश शर्मा
दीपक में
बाती भी जलती है,
पतंगे भी चारों ओर मंडराते हैं,
रोशनी की परछाईं भी
नाचती
और बतियाती हैं चारों ओर.
लेकिन
दीपक का तेल
जब चुक जाता है,
पतंगे उड़ जाते हैं
कहीं और,
रोशनी की अठखेलियाँ भी
छुप जाती हैं
अँधेरे की बाँहों में.
स्नेहहीन दीपक
रह जाता है
अकेला
ढूँढने अपना अस्तित्व
अँधेरे में.
कैलाश शर्मा
वह बतलाता है कि दुनिया मिट्टी है जिस मिट्टी का दीपक बना है। मिट्टी को मिट्टी हो जाना है। जो मचा रहे हैं गुल गपाड़ा, उन्हें गोल गप्पा खिलाना है।
ReplyDeleteबहुत खूब कैलाश शर्मा जी...
ReplyDeleteस्वागत है आपका...
शुक्रिया सुमित जी...
Deleteसुन्दर कविता कैलाश जी
ReplyDeleteअच्छा लिखा है
ReplyDeleteअति सुन्दर कविता
ReplyDeleteआपकी कविता सार्थक और प्रेरणादायक है.
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