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Saturday, April 21, 2012

मौन (लघु कथा)

 वन कुमार जी ऑडिटोरियम के मुख्य दरवाजे पर पहुंचे ही थे कि दरवाजा बंद कर दिया गया. काफी देर दरवाजा खटखटाया तो चौकीदार बाहर निकला व बोला, "साब ऑडिटोरियम में घुसने का समय समाप्त हो गया है और वैसे भी अंदर बहुत भीड़ है. आप वापस ही लौट जायें." पवन कुमार जी चौकीदार को सुनते हुए मन ही मन विचार कर रहे थे, कि आज के दिन के लिए कितने दिनों से लगा हुआ था. "भ्रष्टाचार के विरुद्ध मौन" इस सन्देश को ई-मेलपत्रों व एस.एम्.एस. द्वारा करीब एक महीने से सभी मित्रों को निरंतर भेजा और आज जब वह दिन आया तो खुद को ही देर हो गई. यदि आज अंदर पहुँच कर सभी के साथ मौन नहीं रख सका, तो मित्रों के सामने अच्छी भद्द पिटेगी. चौकीदार दरवाजा बंद करने ही जा रहा था, कि पवन कुमार जी ने उसका हाथ पकड़ कर उससे प्रार्थना की, कि उनका अंदर जाना बहुत आवश्यक है, किन्तु चौकीदार ने अपनी विवशता बताकर उन्हें साफ़ मना कर दिया. तभी पवन कुमार जी ने अपनी जेब से सौ का एक नोट निकाला व चौकीदार के हाथ में पकड़ा दिया. चौकीदार ने उन्हें सलाम मार कर दरवाजा खोला व उनको ऑडिटोरियम के हाल के अंदर तक पहुंचाकर आया. पवन कुमार जी अपने मित्रों संग भ्रष्टाचार के विरुद्ध मौन रखकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे थे.

***चित्र गूगल बाबा से साभार***

17 comments:

  1. आज के हालात पर बहुत सुन्दर कटाक्ष ....

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    1. शुक्रिया कैलाश शर्मा जी...

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  2. teekha ktaksha.mere blog par aapka svagat hae.

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    1. शुक्रिया संगीता जी...

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    1. शुक्रिया संगीता स्वरुप (गीत) जी...

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    1. शुक्रिया शिखा दीपक जी...

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  5. शुक्रिया राजीव कुमार जी...

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  6. आपने अपनी कथा में वर्तमान के कटु सत्यता को परिलक्षित किया है.

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  7. इस तरह के रंगे सियार आजकल बहुताय हो गए हैं ..,.

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    1. आपके विचार से सहमत हूँ...

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  8. एक चौकीदार तो मात्र प्रतीक है सारा सिस्टम ही करप्ट है। अन्ना और बाबा रामदेव की राह आसान नहीं है।

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  9. आज जब मैं ये महत्वपूर्ण पोस्ट पढ रही हुं तब हालात बदल चूके हैं।

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    1. चलिए फिर भी कमेन्ट के लिए शुक्रिया...

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