पवन कुमार जी ऑडिटोरियम के मुख्य दरवाजे पर पहुंचे ही थे कि दरवाजा बंद कर दिया गया. काफी देर दरवाजा खटखटाया तो चौकीदार बाहर निकला व बोला, "साब ऑडिटोरियम में घुसने का समय समाप्त हो गया है और वैसे भी अंदर बहुत भीड़ है. आप वापस ही लौट जायें." पवन कुमार जी चौकीदार को सुनते हुए मन ही मन विचार कर रहे थे, कि आज के दिन के लिए कितने दिनों से लगा हुआ था. "भ्रष्टाचार के विरुद्ध मौन" इस सन्देश को ई-मेल, पत्रों व एस.एम्.एस. द्वारा करीब एक महीने से सभी मित्रों को निरंतर भेजा और आज जब वह दिन आया तो खुद को ही देर हो गई. यदि आज अंदर पहुँच कर सभी के साथ मौन नहीं रख सका, तो मित्रों के सामने अच्छी भद्द पिटेगी. चौकीदार दरवाजा बंद करने ही जा रहा था, कि पवन कुमार जी ने उसका हाथ पकड़ कर उससे प्रार्थना की, कि उनका अंदर जाना बहुत आवश्यक है, किन्तु चौकीदार ने अपनी विवशता बताकर उन्हें साफ़ मना कर दिया. तभी पवन कुमार जी ने अपनी जेब से सौ का एक नोट निकाला व चौकीदार के हाथ में पकड़ा दिया. चौकीदार ने उन्हें सलाम मार कर दरवाजा खोला व उनको ऑडिटोरियम के हाल के अंदर तक पहुंचाकर आया. पवन कुमार जी अपने मित्रों संग भ्रष्टाचार के विरुद्ध मौन रखकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे थे.
***चित्र गूगल बाबा से साभार***
आज के हालात पर बहुत सुन्दर कटाक्ष ....
ReplyDeleteशुक्रिया कैलाश शर्मा जी...
Deleteteekha ktaksha.mere blog par aapka svagat hae.
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता जी...
Deleteबढ़िया कटाक्ष ....
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता स्वरुप (गीत) जी...
DeleteBadhiya..
ReplyDeleteशुक्रिया शिखा दीपक जी...
Deleteशुक्रिया राजीव कुमार जी...
ReplyDeleteआपने अपनी कथा में वर्तमान के कटु सत्यता को परिलक्षित किया है.
ReplyDeleteशुक्रिया मनीषा जी...
Deleteइस तरह के रंगे सियार आजकल बहुताय हो गए हैं ..,.
ReplyDeleteआपके विचार से सहमत हूँ...
Deleteएक चौकीदार तो मात्र प्रतीक है सारा सिस्टम ही करप्ट है। अन्ना और बाबा रामदेव की राह आसान नहीं है।
ReplyDeleteबिलकुल सत्य...
Deleteआज जब मैं ये महत्वपूर्ण पोस्ट पढ रही हुं तब हालात बदल चूके हैं।
ReplyDeleteचलिए फिर भी कमेन्ट के लिए शुक्रिया...
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