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Saturday, April 21, 2012

बंदर ठीकरे नहीं फोड़ते


बंदर सिर्फ उछलने कूदने का नाम नहीं है। बंदर नकल मारने का भी खूब फेमस नाम है। बंदर याद कर लेता है। अब वह बंदर नहीं है जो एक टोपी के बदले टोपियां वापिस फेंक दे। टोपी के बदले पत्‍थर फेंकने वाले बंदरों का विकास हो चुका है। सब कुछ याद की करामात है। याद करना मतलब अनुभव से सीखना। इंसान स्‍मरण करता है और खुद का मरण कर लेता है पर सीखता सिर्फ पैसा कमाना है, सबको लूटना अच्‍छे से सीख लेता है। और बंदर एक बार ठोकर खाई तो दूसरी बार उछलकर पार की खाई। टहनी चाहे कितनी ही हिला लो, बंदर कभी नहीं गिरता। गिरता भी है तो अनुभव की तरह संभल जाता है। टहनी चाहे टूट जाए पर बंदर संभलना नहीं भूलता जबकि हमारे देश के चालक बंदर की तरह भी नहीं हो पा रहे हैं। फिर बापू की तरह ही कैसे हो पाएंगे। 

1 comment:

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!