शाम को 6 बजे अम्मा जी ने अंतिम सांस ली और घर में कोहराम सा मच गया आनन फानन सभी रिश्तेदारों को फ़ोन किये जाने लगे घर के सभी लोग दुखी कम और परेशान ज्यादा दिखाई पड़ रहे थे आखिर सभी को आने बाले 13 दिन कर्तव्य पूरा करने के थे ।
अम्मा की उम्र करीब 70 वर्ष की थी भरा पूरा परिवार 3 लड़के 2 लड़कियां 11 नाती, नातिन 3 बहु और दो दामाद ।पिछले एक साल से अम्मा जी विस्तर पर ही थी। बड़ी बहु जो परिवार में सबसे कम पड़ी लिखी थी ,वही अम्मा जी की सेवा करती थी ,मझला लड़का बिज़नस करता था और घर के ऊपरी भाग में ही रहता था और सप्ताह में एक दो दिन अम्मा के हाल चाल पूँछ कर अपना कर्त्तव्य पूरा कर लेता था ।छोटा लड़का शहर से बाहर नौकरी करता था और 4-5 महीने में एक आध बार ही घर आता था ।सबसे बड़ा लड़का कुछ नहीं कर सका और अपनी पैतृक खेती की देखभाल करता था दोनों लड़कियों की शादी हो चुकी थी और वे अपने परिवारों के साथ खुश थीं।
अम्मा जी ने अपने जीवन में कभी आराम नहीं किया था। अम्मा जी की जिंदगी का एक ही लक्ष्य था कि बच्चों को पढ़ा लिखाकर काबिल बना दें जिससे उनका बुढ़ापा आराम से कट जाए। पर उनके नसीब में आराम कहाँ था । खुद के 5 संतानो की परिवरिश से मुक्त हो पाती ,तब तक नाती और नातिन हो गए और अम्मा बड़े प्रेम से उनका पालन पोषण करनें में लग गयी।नाती नातिन बड़े होते गए और उनसे दूर भी। घर के ऐसे काम जो कोई ना करना चाहे अम्मा उसे अपनी जिम्मेदारी मानते हुए ख़ुशी ख़ुशी पूरा कर देती थी ।बाबू जी का साथ छूटे 9 वर्ष हो चुके थे और इन वर्षो में अम्मा के शरीर में हड्डियां मात्र ही शेष रह गयी थीं पर अम्मा की कार्य क्षमता कभी कम ना हुयी ।
पिछले एक वर्ष से बीमारी के कारण अम्मा बिस्तर पर पड़ी थीं छोटा और मझला लड़का उनसे नाता तोड़ चूका था पर बड़ा लड़का जो घर में अपने निकम्मेपन की बजह से उपेक्षित रहता था ,वही बुढ़ापे की इस कस्टप्रद घडी में उनका सहारा बना था ।हालाँकि अम्मा जी अभी 40 बीघा खेत और एक मकान के साथ 2 प्लाट की मालकिन थीं जो उन्हें बाबू जी की विरासत में मिले थे पर बड़े लड़के के कुछ ना करने के कारण घर में कोहराम सा मचा रहता था ।बड़ा लड़का 40 बीघा खेत पर फसल बटाई पर करता था और शेष दोनों भाई उसमें से अपना हिस्सा वटा लेते थे पर अम्मा को मिलने बाली 1000 रुपये की पेंशन अम्मा अपनी बड़ी बहु को ही देती थी ।जिस पर बाक़ी दोनों बहुओं को संतोष नहीं था ।
खैर अम्मा अब चली गयीं थी पर जाने के समय पर सभी परेशान से थे सभी मोहल्ले बाले इकट्ठे हो चुके थे
"अब तो दाह संस्कार सुबह ही होगा " किसी ने पुछा ,तो पता चला कि सुबह से पहले कुछ नहीं होगा ,अभी तो रिश्तेदार आने बाक़ी है इसलिए एक दो खास व्यवहारियों को छोड़कर बाक़ी मोहल्ले के लोग धीरे धीरे कर अपने घरों को चले गए । रात नौ बजे तक छोटा लड़का और दोनो लड़कियां भी घर पहुँच गयी ।
"अम्मा को भी रात में ही जाना था जाड़े में इतनी लंबी रात कैसे कटेगी " बड़े दामाद का प्रश्न सभी को चुभ सा गया पर मजबूरी थी कोई कुछ बोल ना सका ।
सभी रिश्तेदारों को अपने अपने बच्चों के खाने और सोने की चिंता हो रही थी सो बार बार बच्चों के नाम पर खाने की बाते छेड़ी जा रही थी ।कुछ को ये समस्या थी कि उनके बच्चों को उनके बिना नींद ही नहीं आती है ।बड़ा लड़का बेचारा सबके खाने और सोने की व्यवस्था में पगलाया जा रहा था ।पर बच्चों की फरमाइश अंतहीन थी किसी को दूध चाहिए था किसी को चॉकलेट ।खैर 11 बजे तक सभी खा पीकर व्यवस्थित हो चुके थे ।बाहर अलाव में 10 -15 लोग इकट्ठे होकर मृत्यु से सम्बंधित अपने संस्मरण और कहानियां सुना रहे थे और अम्मा जी के चारो तरफ बैठी औरतें जी भर कर रोने के बाद अपने मिजाज और सम्बन्ध के अनुरूप गुटों में बटकर बुराई पुराण का रसास्वादन करने में व्यस्त थी बीच बीच में हलकी खिलखिलाहट सभी को एक दूसरे की तरफ देखने और झेंपने को मजबूर कर देती ।
इन दोनों समूहों के अलावा एक कमरे में सभी लड़के और दामाद चिंतन में व्यस्त थे ।
" कहाँ ले चलेंगे अम्मा को" छोटे लड़के ने पूँछा
जमुना जी ही ठीक रहेगा ,पर है बहुत दूर ,शांति वन में ही कर देते ,पर लोग क्या कहेँगे।यमुना जी ही ठीक रहेगा " मझले ने समाधान सुझाया
और नौवार तथा सुध्यता कव की रहेगी
बड़े दामाद की चिंता जवान पर आई
"पंडित जी तो परसों के लिए ही तैयार है पर इतनी जल्दी करने से लोग क्या कहेगे सोमवार को करवा देते है "छोटे ने कहा
"दाग तो बड़े भैया ही देंगे क्योंकि पंडित जी कह रहे थे कि या तो सबसे बड़ा या सबसे छोटा लड़का ही मुखाग्नि देता है "मझले ने अपनी बात से अपना रास्ता साफ़ करना चाहा।
"हां मैं तो ऐसी नौकरी में हूँ जहाँ बाल घुटवाकर नहीं जाया जा सकेगा तो बड़े ही ठीक है इस काम के लिए" छोटे ने भी अपना रास्ता क्लियर कर लिया
तब तक छोटे लड़के के ससुर साहब भी चर्चा में शामिल हो गए
"कल सुबह नगर पालिका में इनकी मृत्यु का पंजीकरण करवा देना ,और किसी अच्छे बकील से सलाह लेकर जमीन और जायदाद के दाखिल ख़ारिज की प्रक्रिया शुरू करवा दो, अभी से लगोगे तो भी काफी वक़्त लग जायेगा और उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की अर्ज़ी भी लगा दो ।अभी तेरहवी तक सभी बहनें यही हैं तो इनके हलफनामा भी आसानी से बन जायेगे बाद में उन्हें आने में दिक्कत होगी अगर आपको दिक्कत हो तो वकील मैं करवा दूंगा " ससुर साहब ने अपनी सलाह दी तो सभी उनका मुँह ताकने लगे पर बात फायदे की थी सो सब सहमति में सिर् हिलाने लगे ।शायद ससुर साहब अपने दामाद को प्रॉपर्टी का हक़ दिलवाने का प्रोग्राम बनाकर आये थे ।
और अगर आप लोगों को बुरा ना लगे तो एक सलाह और है ।अभी किसी वकील को बुलाकर कुछ खाली स्टाम्प पर अंगूठा लगवा लो भविष्य में काम आयेगे ।इस बार उन्होंने कुछ ज्यादा ही बोल दिया तो सभी उनको घूरने लगे ससुर भी समझ गए कि अब ज्यादा बात ठीक नहीं सो चुप हो गए
सुबह 5 बजे से अम्मा को ले जाने की तैयारियां शुरू हो गयीं लड़कों के ससुर सुबह ही अपने दामादों के हिस्से की जमीन का मुआइना कर आये रात में गए मोहल्ले के सारे लोग फिर से इकट्ठा हो चुके थे और रात भर में ढेर सारी बातें करने बाली औरतों ने पुनः पूरी ऊर्जा के साथ करुण विलाप प्रारम्भ कर दिया ताकि तेज़ आवाज़ के साथ मजबूत सम्बन्ध की दस्तक सभी के दिलों तक पहुँच सके उनके ह्रदय बिदारक करुण क्रंदन से मोहल्ले बालों की भी ऑंखें नम हो गयी अंतिम संस्कार का सामान कहाँ से आया ये अम्मा के तीनो लड़कों में किसी को पता नहीं था पर अम्मा के अंतिम क्षण की फ़ोटो के लिए छोटा लड़का फोटोग्राफर ले आया था ।
कैमरा देखते ही सभी रिस्तेदार अपने अपने बच्चों को खोजने में लग गए और अम्मा जी के सिरहाने और पैताने बैठकर फ़ोटो खिंचवाने का ऐसा दौर चला कि मोहल्ले बाले परेशान हो गए जो बच्चे फ़ोटो नहीं खिंचाना चाहते थे उन्हें डरा धमकाकर फ़ोटो खिंचवाई गयी कुछ फ़ोटो में फोटोग्राफर ने अपना कौशल दिखाया कुल मिलाकर शादी के रिसेप्शन जितनी फ़ोटो खिचने के बाद ही अम्मा जी की अर्थी उठ पायी लड़के और दामाद भी अपना विशेष पोज देने के बाद सुकून सा महसूस कर रहे थे
अम्मा को ले जाने के लिए ट्रेक्टर की व्यवस्था की गयी थी पर ट्रेक्टर में घर का कोई प्रमुख सदस्य नही था कुल जमा 10 मोहल्ले के बुजुर्ग ही उस पर सवार थे वाकी करीब 200 लोग मोटरसाइकिल और कार पर सवार होकर अंतिम यात्रा में शामिल हो गए ।जिसमे से प्रत्येक चौराहे पर 10 -20 कम होकर घाट पर कुल 50 लोग ही पहुँचे।घाट पर लकड़ी मंगाने को लेकर बहस हो रही थी घर के लोगों का मानना था कि अम्मा के शरीर में कुछ बचा ही कहाँ है सो 3 मन लकड़ी बहुत है खैर बात 3 मन पर तय हुयी और अम्मा जी को मुखाग्नि दे दी गयी।पर चिता पूरी जल पाती उस से पहले ही लोगों के अनुरोध पर पंडित जी कपाल क्रिया करवाकर सबको छुट्टी दे दी ।
शाम तक सभी कम खाश रिश्तेदार अपने कार्यों का व्योरा प्रस्तुत कर और क्षमा याचना कर विदा हो चुके थे और खास रिस्तेदार अगली सुबह बिदा होने के लिए अपनी भूमिका बनाने में मशगूल थे।पर घर के सदस्य काफी परेशान से लग रहे थे और एक दूसरे से तहकीकात चल रही थी आखिर मुद्दा भी संवेदनशील था हुआ ये कि अम्मा जी जो जेवर पहनती थी उसका पता नहीं चल रहा था सबका शक बड़ी बहु की तरफ था और बड़ी बहू अपनी ईमानदारी सिद्ध करने की मशक्कत कर रही थी शाम तक पता चल सका कि अम्मा के झुमके ,गले की चैन और चार चूड़िया बड़ी लड़की ने रात में उतार ली थी इसमें से सोने की चैन और चूड़िया तो उन्होंने बापस कर दी पर झुमके बापस करने से इंकार कर दिया और बताया कि ये झुमके उन्हें बहुत पसंद थे इसलिए अम्मा जी ने बचपन में ही उन्हें वादा किया था कि मेरे मरने के बाद ये तुम ले लेना ।
अगले दिन तक घर बिल्कुल खाली हो चूका था और घर के सदस्य ही शेष रह गए साथ में तीनों लड़कों के सास ससुर और दोनों लड़कियां भी रुकी हुयी थी ।शाम को घर में फिर से बैठक आयोजित की गयी इस बार मुद्दा तेरहवीं के आयोजन को लेकर था पर तेरहवीं का खर्चा कौन करेगा इस पर कोई तैयार नहीं था
"अम्मा ने अपनी पूरी जिंदगी बड़े भैया के साथ ही गुजारी है और दाग भी उन्ही ने दिया है इसलिए तेरहवीं का कार्यक्रम भी वही तय करेंगे "छोटे ने प्रस्ताव रखा
पर मेरे पास इतना पैसा कहाँ है जो मैं 1000 लोगों को खिला सकूँ और वो अकेली मेरी ही तो अम्मा नहीं थी बड़े ने चिंतित होकर कहा
"पर रहती तुम्हारी साथ थी और रुपया भी तुम्ही लेते थे"
"कितना रुपया? तुम लोगों के बच्चों का जितना जेब खर्च है उतने अम्मा की सेवा की है तुम तो देखने तक को तैयार ना थे मैं नहीं कर सकूँगा ।और अगर मुझे ही करना है तो 11 ब्राम्हण और मान्य खिलाकर शांति यज्ञ कर दूंगा ।और अगर बड़ा आयोजन करना हो तो तुम लोग ही जानना ।"बड़े ने गुस्से में अपनी बात पूरी की
"पर मैंने तो अभी प्लाट लिया है उसी की क़िस्त बड़ी मुश्किल से चुका पाया हूँ और अगले महीने बिटिया की फीस भरनी है मेरी तो इस समय हालत खस्ता है "मझले ने अपनी वेवसी जाहिर की
छोटा कहाँ पीछे रहने वाला था बोला "मेरी तो अभी अभी नौकरी लगी है सो मेरे पास पैसा कहाँ से आया।ऐसा करते है अम्मा का बैंक खाता देखो शायद कुछ रुपया हो"
बहस बढ़ती जा रही थी पर नतीजा सिफर।अंत मैं फैसला लिया गया कि सभी लोग बड़े जीजा से 50 हजार रुपये का चंदा उधार लेकर तेरहवी करेगे और अम्मा की सम्पति का निस्तारण तेरहवीं से पहले करके उनके पैसे वापस कर देंगे । बड़े जीजा से जब बात की गयी तो उन्होंने कहा कि तुम अम्मा जी के जेवर बेचकर इंतज़ाम कर लो ।सो अगले दिन ही 80 हजार में अम्मा के गहने बेचकर गहनों के बटवारे का झंझट ही ख़त्म कर दिया गया ।पर अम्मा जी के नाम दो प्लाट का बटवारा बड़ा कठिन था लड़के तीन और प्लाट दो ,कोई भी अपना हिस्सा छोड़ने को तैयार नहीं था ,बेचने पर जग हँसाई का डर था इसलिए दोनों प्लाट दोनों बहनो को बाजार मूल्य से काफी कम कीमत पर बेचने का सौदा कर लिया गया
इधर तेरह दिन घर में बच्चों ने मृत्यु उत्सव मनाया और उधर अम्मा के पुत्रों ने वकील और लेखपालों के साथ तेरह दिन बटवारा उत्सव मनाकर अम्मा के आने पायी को तीन बराबर हिस्सों में बाट लिया ।80 हज़ार रुपयों से आयोजित तेरहवीं पर सभी लोगों को आमंत्रण दिया गया खासकर जनप्रतिनिधि को लाने के लिए विशेष व्यवस्था भी की गयी क्योंकि उनका आना सामाजिक रसूख की बात थी ब्राम्हणों को अच्छा दान मिला और मान्यों को भी विदाई दी गयी ।अच्छे व्यंजन खाकर जाने बाले लोगों की जवान पर एक ही बात थी भगवान ऐसे अच्छे और संस्कारी बेटे सभी को दे ।
अम्मा जी की खटिया और रोज के इस्तेमाल का सामान घर की सबसे बड़ी और अनपढ़ बहु आज भी प्रयोग कर अपनी अम्मा जी की याद में आंसू बहा लेती है क्योंकि अम्मा जी तो वास्तव में उन्ही को प्यारी थी ।और बड़ा लड़का आज भी साल में एक बार 11 ब्राम्हणों को भोज करवाकर श्राद्ध कर्म पूर्ण कर अपने कर्तव्य पूरे करता है भले ही 13 बीघा खेत पर हुयी उपज से उसका खर्चा ना चलता हो ।
अम्मा की उम्र करीब 70 वर्ष की थी भरा पूरा परिवार 3 लड़के 2 लड़कियां 11 नाती, नातिन 3 बहु और दो दामाद ।पिछले एक साल से अम्मा जी विस्तर पर ही थी। बड़ी बहु जो परिवार में सबसे कम पड़ी लिखी थी ,वही अम्मा जी की सेवा करती थी ,मझला लड़का बिज़नस करता था और घर के ऊपरी भाग में ही रहता था और सप्ताह में एक दो दिन अम्मा के हाल चाल पूँछ कर अपना कर्त्तव्य पूरा कर लेता था ।छोटा लड़का शहर से बाहर नौकरी करता था और 4-5 महीने में एक आध बार ही घर आता था ।सबसे बड़ा लड़का कुछ नहीं कर सका और अपनी पैतृक खेती की देखभाल करता था दोनों लड़कियों की शादी हो चुकी थी और वे अपने परिवारों के साथ खुश थीं।
अम्मा जी ने अपने जीवन में कभी आराम नहीं किया था। अम्मा जी की जिंदगी का एक ही लक्ष्य था कि बच्चों को पढ़ा लिखाकर काबिल बना दें जिससे उनका बुढ़ापा आराम से कट जाए। पर उनके नसीब में आराम कहाँ था । खुद के 5 संतानो की परिवरिश से मुक्त हो पाती ,तब तक नाती और नातिन हो गए और अम्मा बड़े प्रेम से उनका पालन पोषण करनें में लग गयी।नाती नातिन बड़े होते गए और उनसे दूर भी। घर के ऐसे काम जो कोई ना करना चाहे अम्मा उसे अपनी जिम्मेदारी मानते हुए ख़ुशी ख़ुशी पूरा कर देती थी ।बाबू जी का साथ छूटे 9 वर्ष हो चुके थे और इन वर्षो में अम्मा के शरीर में हड्डियां मात्र ही शेष रह गयी थीं पर अम्मा की कार्य क्षमता कभी कम ना हुयी ।
पिछले एक वर्ष से बीमारी के कारण अम्मा बिस्तर पर पड़ी थीं छोटा और मझला लड़का उनसे नाता तोड़ चूका था पर बड़ा लड़का जो घर में अपने निकम्मेपन की बजह से उपेक्षित रहता था ,वही बुढ़ापे की इस कस्टप्रद घडी में उनका सहारा बना था ।हालाँकि अम्मा जी अभी 40 बीघा खेत और एक मकान के साथ 2 प्लाट की मालकिन थीं जो उन्हें बाबू जी की विरासत में मिले थे पर बड़े लड़के के कुछ ना करने के कारण घर में कोहराम सा मचा रहता था ।बड़ा लड़का 40 बीघा खेत पर फसल बटाई पर करता था और शेष दोनों भाई उसमें से अपना हिस्सा वटा लेते थे पर अम्मा को मिलने बाली 1000 रुपये की पेंशन अम्मा अपनी बड़ी बहु को ही देती थी ।जिस पर बाक़ी दोनों बहुओं को संतोष नहीं था ।
खैर अम्मा अब चली गयीं थी पर जाने के समय पर सभी परेशान से थे सभी मोहल्ले बाले इकट्ठे हो चुके थे
"अब तो दाह संस्कार सुबह ही होगा " किसी ने पुछा ,तो पता चला कि सुबह से पहले कुछ नहीं होगा ,अभी तो रिश्तेदार आने बाक़ी है इसलिए एक दो खास व्यवहारियों को छोड़कर बाक़ी मोहल्ले के लोग धीरे धीरे कर अपने घरों को चले गए । रात नौ बजे तक छोटा लड़का और दोनो लड़कियां भी घर पहुँच गयी ।
"अम्मा को भी रात में ही जाना था जाड़े में इतनी लंबी रात कैसे कटेगी " बड़े दामाद का प्रश्न सभी को चुभ सा गया पर मजबूरी थी कोई कुछ बोल ना सका ।
सभी रिश्तेदारों को अपने अपने बच्चों के खाने और सोने की चिंता हो रही थी सो बार बार बच्चों के नाम पर खाने की बाते छेड़ी जा रही थी ।कुछ को ये समस्या थी कि उनके बच्चों को उनके बिना नींद ही नहीं आती है ।बड़ा लड़का बेचारा सबके खाने और सोने की व्यवस्था में पगलाया जा रहा था ।पर बच्चों की फरमाइश अंतहीन थी किसी को दूध चाहिए था किसी को चॉकलेट ।खैर 11 बजे तक सभी खा पीकर व्यवस्थित हो चुके थे ।बाहर अलाव में 10 -15 लोग इकट्ठे होकर मृत्यु से सम्बंधित अपने संस्मरण और कहानियां सुना रहे थे और अम्मा जी के चारो तरफ बैठी औरतें जी भर कर रोने के बाद अपने मिजाज और सम्बन्ध के अनुरूप गुटों में बटकर बुराई पुराण का रसास्वादन करने में व्यस्त थी बीच बीच में हलकी खिलखिलाहट सभी को एक दूसरे की तरफ देखने और झेंपने को मजबूर कर देती ।
इन दोनों समूहों के अलावा एक कमरे में सभी लड़के और दामाद चिंतन में व्यस्त थे ।
" कहाँ ले चलेंगे अम्मा को" छोटे लड़के ने पूँछा
जमुना जी ही ठीक रहेगा ,पर है बहुत दूर ,शांति वन में ही कर देते ,पर लोग क्या कहेँगे।यमुना जी ही ठीक रहेगा " मझले ने समाधान सुझाया
और नौवार तथा सुध्यता कव की रहेगी
बड़े दामाद की चिंता जवान पर आई
"पंडित जी तो परसों के लिए ही तैयार है पर इतनी जल्दी करने से लोग क्या कहेगे सोमवार को करवा देते है "छोटे ने कहा
"दाग तो बड़े भैया ही देंगे क्योंकि पंडित जी कह रहे थे कि या तो सबसे बड़ा या सबसे छोटा लड़का ही मुखाग्नि देता है "मझले ने अपनी बात से अपना रास्ता साफ़ करना चाहा।
"हां मैं तो ऐसी नौकरी में हूँ जहाँ बाल घुटवाकर नहीं जाया जा सकेगा तो बड़े ही ठीक है इस काम के लिए" छोटे ने भी अपना रास्ता क्लियर कर लिया
तब तक छोटे लड़के के ससुर साहब भी चर्चा में शामिल हो गए
"कल सुबह नगर पालिका में इनकी मृत्यु का पंजीकरण करवा देना ,और किसी अच्छे बकील से सलाह लेकर जमीन और जायदाद के दाखिल ख़ारिज की प्रक्रिया शुरू करवा दो, अभी से लगोगे तो भी काफी वक़्त लग जायेगा और उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की अर्ज़ी भी लगा दो ।अभी तेरहवी तक सभी बहनें यही हैं तो इनके हलफनामा भी आसानी से बन जायेगे बाद में उन्हें आने में दिक्कत होगी अगर आपको दिक्कत हो तो वकील मैं करवा दूंगा " ससुर साहब ने अपनी सलाह दी तो सभी उनका मुँह ताकने लगे पर बात फायदे की थी सो सब सहमति में सिर् हिलाने लगे ।शायद ससुर साहब अपने दामाद को प्रॉपर्टी का हक़ दिलवाने का प्रोग्राम बनाकर आये थे ।
और अगर आप लोगों को बुरा ना लगे तो एक सलाह और है ।अभी किसी वकील को बुलाकर कुछ खाली स्टाम्प पर अंगूठा लगवा लो भविष्य में काम आयेगे ।इस बार उन्होंने कुछ ज्यादा ही बोल दिया तो सभी उनको घूरने लगे ससुर भी समझ गए कि अब ज्यादा बात ठीक नहीं सो चुप हो गए
सुबह 5 बजे से अम्मा को ले जाने की तैयारियां शुरू हो गयीं लड़कों के ससुर सुबह ही अपने दामादों के हिस्से की जमीन का मुआइना कर आये रात में गए मोहल्ले के सारे लोग फिर से इकट्ठा हो चुके थे और रात भर में ढेर सारी बातें करने बाली औरतों ने पुनः पूरी ऊर्जा के साथ करुण विलाप प्रारम्भ कर दिया ताकि तेज़ आवाज़ के साथ मजबूत सम्बन्ध की दस्तक सभी के दिलों तक पहुँच सके उनके ह्रदय बिदारक करुण क्रंदन से मोहल्ले बालों की भी ऑंखें नम हो गयी अंतिम संस्कार का सामान कहाँ से आया ये अम्मा के तीनो लड़कों में किसी को पता नहीं था पर अम्मा के अंतिम क्षण की फ़ोटो के लिए छोटा लड़का फोटोग्राफर ले आया था ।
कैमरा देखते ही सभी रिस्तेदार अपने अपने बच्चों को खोजने में लग गए और अम्मा जी के सिरहाने और पैताने बैठकर फ़ोटो खिंचवाने का ऐसा दौर चला कि मोहल्ले बाले परेशान हो गए जो बच्चे फ़ोटो नहीं खिंचाना चाहते थे उन्हें डरा धमकाकर फ़ोटो खिंचवाई गयी कुछ फ़ोटो में फोटोग्राफर ने अपना कौशल दिखाया कुल मिलाकर शादी के रिसेप्शन जितनी फ़ोटो खिचने के बाद ही अम्मा जी की अर्थी उठ पायी लड़के और दामाद भी अपना विशेष पोज देने के बाद सुकून सा महसूस कर रहे थे
अम्मा को ले जाने के लिए ट्रेक्टर की व्यवस्था की गयी थी पर ट्रेक्टर में घर का कोई प्रमुख सदस्य नही था कुल जमा 10 मोहल्ले के बुजुर्ग ही उस पर सवार थे वाकी करीब 200 लोग मोटरसाइकिल और कार पर सवार होकर अंतिम यात्रा में शामिल हो गए ।जिसमे से प्रत्येक चौराहे पर 10 -20 कम होकर घाट पर कुल 50 लोग ही पहुँचे।घाट पर लकड़ी मंगाने को लेकर बहस हो रही थी घर के लोगों का मानना था कि अम्मा के शरीर में कुछ बचा ही कहाँ है सो 3 मन लकड़ी बहुत है खैर बात 3 मन पर तय हुयी और अम्मा जी को मुखाग्नि दे दी गयी।पर चिता पूरी जल पाती उस से पहले ही लोगों के अनुरोध पर पंडित जी कपाल क्रिया करवाकर सबको छुट्टी दे दी ।
शाम तक सभी कम खाश रिश्तेदार अपने कार्यों का व्योरा प्रस्तुत कर और क्षमा याचना कर विदा हो चुके थे और खास रिस्तेदार अगली सुबह बिदा होने के लिए अपनी भूमिका बनाने में मशगूल थे।पर घर के सदस्य काफी परेशान से लग रहे थे और एक दूसरे से तहकीकात चल रही थी आखिर मुद्दा भी संवेदनशील था हुआ ये कि अम्मा जी जो जेवर पहनती थी उसका पता नहीं चल रहा था सबका शक बड़ी बहु की तरफ था और बड़ी बहू अपनी ईमानदारी सिद्ध करने की मशक्कत कर रही थी शाम तक पता चल सका कि अम्मा के झुमके ,गले की चैन और चार चूड़िया बड़ी लड़की ने रात में उतार ली थी इसमें से सोने की चैन और चूड़िया तो उन्होंने बापस कर दी पर झुमके बापस करने से इंकार कर दिया और बताया कि ये झुमके उन्हें बहुत पसंद थे इसलिए अम्मा जी ने बचपन में ही उन्हें वादा किया था कि मेरे मरने के बाद ये तुम ले लेना ।
अगले दिन तक घर बिल्कुल खाली हो चूका था और घर के सदस्य ही शेष रह गए साथ में तीनों लड़कों के सास ससुर और दोनों लड़कियां भी रुकी हुयी थी ।शाम को घर में फिर से बैठक आयोजित की गयी इस बार मुद्दा तेरहवीं के आयोजन को लेकर था पर तेरहवीं का खर्चा कौन करेगा इस पर कोई तैयार नहीं था
"अम्मा ने अपनी पूरी जिंदगी बड़े भैया के साथ ही गुजारी है और दाग भी उन्ही ने दिया है इसलिए तेरहवीं का कार्यक्रम भी वही तय करेंगे "छोटे ने प्रस्ताव रखा
पर मेरे पास इतना पैसा कहाँ है जो मैं 1000 लोगों को खिला सकूँ और वो अकेली मेरी ही तो अम्मा नहीं थी बड़े ने चिंतित होकर कहा
"पर रहती तुम्हारी साथ थी और रुपया भी तुम्ही लेते थे"
"कितना रुपया? तुम लोगों के बच्चों का जितना जेब खर्च है उतने अम्मा की सेवा की है तुम तो देखने तक को तैयार ना थे मैं नहीं कर सकूँगा ।और अगर मुझे ही करना है तो 11 ब्राम्हण और मान्य खिलाकर शांति यज्ञ कर दूंगा ।और अगर बड़ा आयोजन करना हो तो तुम लोग ही जानना ।"बड़े ने गुस्से में अपनी बात पूरी की
"पर मैंने तो अभी प्लाट लिया है उसी की क़िस्त बड़ी मुश्किल से चुका पाया हूँ और अगले महीने बिटिया की फीस भरनी है मेरी तो इस समय हालत खस्ता है "मझले ने अपनी वेवसी जाहिर की
छोटा कहाँ पीछे रहने वाला था बोला "मेरी तो अभी अभी नौकरी लगी है सो मेरे पास पैसा कहाँ से आया।ऐसा करते है अम्मा का बैंक खाता देखो शायद कुछ रुपया हो"
बहस बढ़ती जा रही थी पर नतीजा सिफर।अंत मैं फैसला लिया गया कि सभी लोग बड़े जीजा से 50 हजार रुपये का चंदा उधार लेकर तेरहवी करेगे और अम्मा की सम्पति का निस्तारण तेरहवीं से पहले करके उनके पैसे वापस कर देंगे । बड़े जीजा से जब बात की गयी तो उन्होंने कहा कि तुम अम्मा जी के जेवर बेचकर इंतज़ाम कर लो ।सो अगले दिन ही 80 हजार में अम्मा के गहने बेचकर गहनों के बटवारे का झंझट ही ख़त्म कर दिया गया ।पर अम्मा जी के नाम दो प्लाट का बटवारा बड़ा कठिन था लड़के तीन और प्लाट दो ,कोई भी अपना हिस्सा छोड़ने को तैयार नहीं था ,बेचने पर जग हँसाई का डर था इसलिए दोनों प्लाट दोनों बहनो को बाजार मूल्य से काफी कम कीमत पर बेचने का सौदा कर लिया गया
इधर तेरह दिन घर में बच्चों ने मृत्यु उत्सव मनाया और उधर अम्मा के पुत्रों ने वकील और लेखपालों के साथ तेरह दिन बटवारा उत्सव मनाकर अम्मा के आने पायी को तीन बराबर हिस्सों में बाट लिया ।80 हज़ार रुपयों से आयोजित तेरहवीं पर सभी लोगों को आमंत्रण दिया गया खासकर जनप्रतिनिधि को लाने के लिए विशेष व्यवस्था भी की गयी क्योंकि उनका आना सामाजिक रसूख की बात थी ब्राम्हणों को अच्छा दान मिला और मान्यों को भी विदाई दी गयी ।अच्छे व्यंजन खाकर जाने बाले लोगों की जवान पर एक ही बात थी भगवान ऐसे अच्छे और संस्कारी बेटे सभी को दे ।
अम्मा जी की खटिया और रोज के इस्तेमाल का सामान घर की सबसे बड़ी और अनपढ़ बहु आज भी प्रयोग कर अपनी अम्मा जी की याद में आंसू बहा लेती है क्योंकि अम्मा जी तो वास्तव में उन्ही को प्यारी थी ।और बड़ा लड़का आज भी साल में एक बार 11 ब्राम्हणों को भोज करवाकर श्राद्ध कर्म पूर्ण कर अपने कर्तव्य पूरे करता है भले ही 13 बीघा खेत पर हुयी उपज से उसका खर्चा ना चलता हो ।
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यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!