शाम का समय है
हर कोई घर जाने की जल्दी में है। चूड़ी वाली गली में आज काफी भीड़ है। गली के
नुक्कड़ पे छोटा सा मकान है । मकान के अन्दर चाचा करीम हुक्के का पाइप थामे न जाने
क्या सोच रहे हैं? लगता है कि आज कारखाने से जल्दी आ गये हैं । उनके थोड़ी दूरी पर
सकीना जो सब जगह सकीना चच्ची के नाम से मशहूर हैं, बैठी चूल्हे पर खाना पका रही हैं। बीस बर्ष
की बेटी फरजाना कोई कपड़ा सिल रही है। खाना पकाते हुए सकीना पूछती हैं, "अजी किस
सोच में बैठे हो?”
करीम पाइप को होठों
से निकालते हुए बोले, "आज मैं चारों बेटों के पास गया मैंने कहा दस दिन बाद
तुम्हारी बहन फरजाना का निकाह है तुम सब लोग मदद करो लेकिन उन लोगों ने मदद करने
से मना कर दिया। जब मैंने कहा कि मेरे पास जो था तुम चारों को दे दिया तो अनवर बोला हम पर कोई अहसान नहीं किया। ये तो हर माँ
बाप अपनी औलाद के लिए करते हैं।“
सकीना – “खुदा के
वास्ते ज्यादा मत सोचा करो तबियत खराब हो जायेगी। आप क्यों नहीं सोचते कि जो बेटे
हमें अकेला छोड़कर चले गये एक पल के लिए भी ये नहीं सोचा कि बूढ़े माँ-बाप कैसे पेट
भरेंगे तो उनसे और उम्मीद क्या करें?”
करीम- “दूसरे
मोहल्ले के शख्स हैं शर्मा जी। उन्होंने कहा है कि वह अपनी जमीन पर कर्ज लेकर
हमारी मदद करेंगे । देखो तो सकीना अपने काम नहीं आये और दूसरे मजहब के लोगों ने हमारी
परेशानी को समझा।“
सकीना – “आज भी
इंसान के भेष में फरिश्ते हर मजहब में मौजूद हैं। अल्लाह हमें भी कोई मौका बक्शे जो हम उनके भी
कभी काम आ सकें। चलिये अब आप खाना खा लीजिए।"
करीम खाना
खाने जैसे ही बैठे वैसे ही गली में से तेज शोर-शराबे की आवाज़ आई और भगदड़ मच गई।
सकीना बेटी को इशारा
करते हुए बोली, "फरजाना देखो तो बाहर कैसा शोर है?”
फरजाना दरवाजे से
चीखती है, "अम्मी दंगा हो गया। हिन्दू-मुसलमान एक दूसरे को मार-काट रहे
हैं।"
इतना कहकर डर के
मारे फरजाना दरवाज़ा बंद कर लेती है।
करीम खाने की थाली एक
ओर खिसकाकर खड़ा हो जाता है, "लाहौल विला कुव्वत !न जाने खुदा कब इन सब बेअक्लों
को अक्ल देगा? ये सब क्यों नहीं समझते हम सब एक ही मालिक की औलाद हैं।“
इतने कोई दरवाज़ा
तेजी से खटखटाता है।
करीम- “कौन है?”
जैसे ही वह दरवाज़ा खोलता
है एक लड़की घर में अन्दर की ओर भागती है ।
करीम- “तुम कौन हो
बेटी?”
लड़की गौर से करीम
को देखते हुए बहुत सहम कर बोलती है, " बाबा मुझे बचा लो मेरा नाम किरन है मैं
आगे वाले मोहल्ले में रहती हूँ। हिन्दू होने की वजह से आपकी कौम वाले मुझे मार देना
चाहते हैं।"
फिर कुछ डरते हुए,
"बाबा आप भी तो मुसलमान है। कहीं आप भी मुझे मार तो नही डालेंगे?"
करीम- “न हिन्दू हूँ न मुसलमान हूँ। अब तुम ही तो कह रही हो बाबा मुझे तो मैं तुम्हारा बाबा ही हूँ। डरो
नहीं बेटी तुमको कुछ नहीं होगा। अल्लाह मुझे तुम्हारी हिफाजत करने की ताकत दे।“
इतना सुनकर किरन के
चेहरे पर खौफ कुछ कम होता है।
बाहर से कोई चीखता
है दरवाज़ा खोलो हिन्दू लड़की को बाहर निकालो। नहीं तो दरवाज़ा तोड़ देंगे ।
करीम डरी आवाज़ में,
"यहाँ कोई लड़की नहीं है।"
तभी लोग दरवाज़ा
तोड़कर अन्दर आ जाते हैं।
तभी उन्हें करीम की
बेटी फरजाना परदे की आड़ में खड़ी दिखती है और वे उसे हिंदू लड़की के वहम में गोली
चलाकर मार देते हैं और फरजाना बेदम होकर ज़मीन पर गिर पड़ती है। करीम और सकीना दुःख
के मारे चीख पड़ते हैं । इतने में पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज़ सुनाई देती है जिसे सुनकर दंगाई भाग जाते हैं।
घर के आसपास भीड़ इकट्ठी
हो जाती है और पुलिस के आने पर किरन भी बाहर आ जाती है।
भीड़ में खड़ा फिरोज़,
जो दूर से यह सब देख रहा था, किरन को देखकर बोलता है, “मियाँ जब तुमको पता था कि
यह लड़की तुम्हारे घर छुपी है तो बताया क्यों नहीं? अपनी लड़की को मरवा कर आखिर तुमको क्या
मिला?”
करीम आँसू पोंछते हुए
बोला, "बेशक मेरी लड़की मारी गई लेकिन मैंने इस लड़की का यकीन नहीं तोड़ा। अगर
आज मैं इस लड़की का यकीन तोड़ देता तो शायद फिर कभी कोई हिन्दू किसी मुसलमान पर
विश्वास नहीं करता।“
इतना कहकर करीम
फरज़ाना से लिपटकर रोने लगता है।
लेखक : अमित शुक्ला
बरेली, उत्तर प्रदेश
संपादन : सुमित प्रताप सिंह
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सुमित प्रताप सिंह,
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