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Tuesday, August 26, 2014

ग़ज़ल

कर रहे हैं हम अलल* एलान सब।
है अता कर्दा* तेरा अहसान सब।।
कुछ गलतफहमी न दिल में पाल तू।
है उसी के दम से तेरी शान सब।।
कोशिशें मत छोड़ पहले जाँच ले।
अपने गिर्दो-पेश* के इम्कान* सब।।
तिश्नगी* सहरा की बढ़ती जाए यूँ।
खत्म हो जाएँगे नखलिस्तान सब।।
ऐशो – इशरत की तलब जिनकी बढ़ी।
बेचते फिरते हैं वो ईमान सब।।
आदमी मत खेल तू बारूद से।
छोटे पड़ जाएँगे ये शमशान सब।।
सुन ‘असर’ मालिक तो बस वो एक है।
चार दिन के हैं यहाँ मेहमान सब।।


अलल – खुल्लम-खुल्ला, अता कर्दा – दिया हुआ, 
गिर्दो-पेश – हर-तरफ, इम्कान - संभावनाएँ, 
तिश्नगी – प्यास 
© प्रमोद शर्मा ‘असर’
हौज़ ख़ास, नई दिल्ली

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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