साथ रहकर मेरे
शादमाँ कुछ नहीं ǀ
लाख पूछूं वो करता
बयाँ कुछ नहीं ǀǀ
आपसी रिश्ते से, डर
से, लालच से या ǀ
सच जो कह न सके वो ज़ुबां
कुछ नहीं ǀǀ
जो भी जैसा करे पाए
वैसा सिला ǀ
सब तेरे सामने है
निहाँ कुछ नहीं ǀǀ
काम आए न गर्दिश में
बच्चों के जो ǀ
कहना पड़ता है दुःख
से वो माँ कुछ नहीं ǀǀ
जो रियाया के दुःख
से रहे बेख़बर ǀ
मेरा दावा है वो
हुक्मरां कुछ नहीं ǀǀ
आए दर पर सवाली जो
उम्मीद ले ǀ
जाए मायूस तो आस्तां
कुछ नहीं ǀǀ
मेहनतें चाहे जितनी
करे वो ‘असर’ ǀ
जो चमन उजड़ा तो
बागबां कुछ नहीं ǀǀ
© प्रमोद शर्मा ‘असर’
हौज़ ख़ास, नई दिल्ली
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