अशोक अपने कमरे में बैठा शून्य की ओर निहार रहा था कि तभी उसका मोबाइल
फोन बजने लगा.
“हैलो दीपक! तू पीछे ही रुक मैं बस दो मिनट में आता हूँ.” इतना कहकर
अशोक ने झटपट कपड़े पहने और कमरे के पिछले दरवाजे से बाहर निकल गया.
होस्टल से कुछ दूर झाड़ियों की ओट में दीपक कार लिए खड़ा हुआ था. अशोक
ने उससे गले मिलते हुए पूछा, “काम हुआ?”
“हाँ काम तो हो गया. अब काम-तमाम कब करना है?” दीपक हलकी मुस्कराहट के
साथ बोला.
अशोक ने भी मुस्कुराने की कोशिश की, “काम-तमाम आज शाम को ही होगा.”
दीपक फिर मुस्कुरा दिया, “लगता है बड़ी जल्दी है जनाब को.”
अशोक ने उसकी मुस्कराहट का बुरा नहीं माना, “कलेजे में आग लग रखी है
भाई. उसका काम-तमाम करके ही ठंडक मिलेगी.”
“तो चल तेरे कलेजे को ठंडक पहुँचाकर ही दम लेते हैं. बता कहाँ चलना
है?” दीपक ने कार स्टार्ट कर रोड पर दौड़ाते हुए पूछा.
अशोक ने बिना उसकी ओर देखते हुए कहा, “अशोक होटल के पास विनय मार्ग पर
बने हनुमान मंदिर में. वहीं मिलेंगे वो.”
दीपक ने एकदम कार में ब्रेक लगाये, “अबे पागल हो गया है तू? वी.आई.पी.
एरिया है वो. चारों ओर कितनी तगड़ी सिक्योरिटी रहती है. कहीं और का भी तो प्लान कर
सकता था.”
“क्यों डर के मारे अम्मा मर गईं क्या? तुझे तो मैं बड़ा दिलेर मानता
था.” अशोक व्यंग्यात्मक हँसी हँसते हुए बोला.
दीपक ने अशोक की आँखों में आँखें डालकर कहा, “मेरा जिगरा देखना चाहता
है. तू बोल तो सही उसे पी.एम. हाउस के बाहर उड़ाकर आ आऊँ.”
अशोक थोड़ा शांत हुआ, “उसे उड़ाना तो मुझे ही है. बस तुझे जो कहा है उसे
करता जा.”
दीपक ने कार फिर से स्टार्ट कर दी, “जैसी तेरी मर्जी. ये पकड़ रिवोल्वर
और ये कारतूस. बस बारह हैं. छः रिवोल्वर में लोड हैं और छः इमरजेंसी के लिए.”
अशोक ने रिवोल्वर का मुआयना किया, “ओरिजिनल है न? पता चला कि देशी
कट्टे की तरह फायर करते ही फट जाये और खुद के साथ-साथ मेरा हाथ भी उड़ा दे.”
“अबे ध्यान से देख जर्मनी मेड है. जिससे ली है साले ने पचास हजार
किराया लिया है आज-आज का. फुल गारन्टी दी है चलने की. वरना पूरे पैसों के साथ दस
हजार एक्स्ट्रा वापसी देगा.” दीपक ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा.
अशोक का एक बार रिवोल्वर का ठीक से मुआयना करने का था, “एक राउंड में
ही उसका काम-तमाम हो जाएगा. दूसरे की जरूरत ही न पड़े शायद.”
“अरे एक गोली में ही उसका राम नाम सत्य हो जाएगा.” दीपक ने बेफिक्री
से सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए कहा.
अशोक की आखें खून से लाल हो गईं, “एक गोली से काम नहीं चलेगा. छः की
छः गोलियाँ उसके सीने पर उतारकर ही दम लूँगा.”
“जितनी चाहे गोलियाँ उसके सीने में उतार लेना पर दो-चार गोलियाँ बचाकर
भी रखनी पड़ेगी. बचकर भागने के काम आएँगी.” ट्रैफिक जाम से उलझते हुए दीपक बोला.
“और अगर ऐसा ट्रैफिक जाम रहा तो फिर तो भाग लिए.” और कार के भीतर हँसी
से माहौल कुछ पलों के लिए हल्का हो गया.
“ये पकड़ इसे रिवोल्वर की नली में पर लगा ले. इसे साइलेंसर कहते हैं. इससे
गोली चलने की आवाज नहीं आएगी और जब तक लोगों को पता चलेगा कि उसे गोली लगी है तब
तक हम दोनों जाने कहाँ पहुँच चुके होंगे.” दीपक ने साइलेंसर अशोक के हाथ में थमा
दिया.
कुछ देर रूककर दीपक ने अशोक से पूछा, “यार ये इतना सब हो कैसे गया?
आखिर कहानी क्या है?”
दीपक ने मानो अशोक की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, “स्कूल खत्म होते
ही तूने तो मेरा साथ छोड़कर पूना की राह पकड़ ली और मैं यहाँ दिल्ली आ गया. जैसे
तेरे माँ-बाप तुझे इंजीनियर बनाने के इच्छुक थे, वैसे ही मेरे माँ-बाप मुझे
आई.ए.एस. बनाना चाहते थे सो ग्रेजुएशन करने दिल्ली भेज दिया. दो साल तो बढ़िया बीते
लेकिन तीसरे साल अपने कोर्स की सेकेंड इयर की स्टूडेंट निशा से दिल लग गया.
हालाँकि एक-दूसरे का साथ पाकर हम दोनों की ही पढ़ाई-लिखाई पर कोई कोई आँच न आई,
बल्कि पहले से बेहतर हुई. फाइनल इयर में मैंने अच्छा स्कोर किया और उसने भी अपनी
क्लास में सेकेण्ड डिवीजन हासिल की. इस एक साल में हमारा प्यार परवान चढ़ चुका था
और हम दो दिल एक जान हो चुके थे.”
“मतलब कि तूने हम बिहारियों की उस परंपरा को जारी रखने का जिम्मा उठा
लिया था, कि बिहार से बाहर पढ़ने जाओ तो एक अच्छी नौकरी और शादी के लिए एक बढ़िया सी
छोकरी ढूँढकर ही बिहार को लौटो.” दीपक ने अशोक के हाथ में ताली मारी.
अशोक ने इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
दीपक थोड़ा झेंपते हुए बोला, “सॉरी यार मैं तो बस मजाक कर रहा था.
अच्छा आगे क्या हुआ?”
“इधर निशा ने ग्रेजुएशन क्या की उसके घरवालों को उसकी शादी की चिंता
लग गई. उसने मुझसे कहा कि मैं उसके मम्मी-डैडी से बात करूँ. एक दिन डरते-डरते मैं
उसके घर पर निशा का रिश्ता माँगने गया. उसके मम्मी-डैडी से मैंने निशा का हाथ
माँगा, लेकिन...” अशोक इससे पहले अपनी बात पूरी कर पाता दीपक ने बेचैनी से पूछा,
“लेकिन क्या?”
“उसके बाप ने मेरे सामने एक अनोखी शर्त रख दी.” अशोक ने उदासी में
कहा.
दीपक ने उत्सुकता पूछा, “कैसी शर्त.”
अशोक ने बिना दीपक की ओर देखे बोलना जारी रखा, “शर्त थी कि मुझे शादी
के बाद निशा के बाप का सरनेम लगाना पड़ेगा. मुझे मिश्रा से गुप्ता बनना था.”
“अबे यार बस इतनी छोटी सी शर्त थी. तुझे बिना सोचे मान लेनी चाहिए
थी.” दीपक कार की रफ़्तार को थोड़ा और तेज करते हुए बोला.
अशोक ने दीपक को धिक्कारते हुए देखा, “यह छोटी सी शर्त है. अपने वजूद
को खत्म करके दूसरे के खोल में तू शायद जी ले पर मैं नहीं जी सकता.”
दीपक को अशोक की सोच पर तरस आ रहा था, “मेरे भाई कुछ नहीं रखा जात-पात
में. ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं.”
“वैसे तो मैं भी जाति के प्रति इतना कट्टर नहीं हूँ. अगर होता तो निशा
से दिल नहीं लगाता. पर ये मामला कुछ अलग हो गया था. सोचो अगर मैं मिश्रा से गुप्ता
बन जाता तो तेरे जैसे दोस्त ही मजाक कर-करके जीना हराम कर देते मेरा.” अशोक ने अपनी
सफाई पेश की.
दीपक ने दूसरी सिगरेट जला ली और कश मारने लगा,”तेरी गलतफहमी थी ये.
खैर छोड़ आगे क्या हुआ बता.”
अशोक हालाँकि दीपक को थोड़ी-थोड़ी देर में सिगरेट सुलगाने पर टोकना
चाहता था, लेकिन फिर सिगरेट को भूलकर अपनी कहानी पर आ गया, “होना क्या था जब मैंने
निशा के बाप का सुझाव नहीं माना तो उसने मुझसे कहा कि अगर मिश्रा से गुप्ता नहीं
बनोगे तो निशा के जीवन से दूर जाना पड़ेगा.”
दीपक ने कार के शीशे में अपने बिखरे बालों को सँवारते हुए पूछा, “तो
निशा ने अपने पापा से विरोध नहीं दर्शाया? आखिर तू ही तो उसे नहीं चाहता था वो भी
तो तुझे प्यार करती थी.”
“हाँ उसने विरोध किया और बदले में अपने माँ का जोरदार झापड़ भी खाया.
एक-दिनों में जब मामला नोर्मल हुआ तो वो मेरे पास आई भी.” अशोक के चेहरे पर हलकी
सी मुसकुराहट आई.
दीपक से अशोक की चुप्पी बर्दाश्त न हुई,”अच्छा वो तेरे पास आई तो क्या
वो शादी के लिए राजी थी.”
अशोक दीपक के मस्तिष्क में मूर्खता के कीटाणु खोजने की कोशिश कर रहा
था, “राजी न होती तो क्यों आती. वह अपने बाप के इस निर्णय के समर्थन में नहीं थी.
हमने फैसला किया कि हम चुपचाप कोर्ट में जाकर कानूनी तौर पर एक-दूसरे के हमसफ़र बन
जायेंगे.”
“गुड तो मतलब तुम दोनों ने जाकर कोर्ट में जाकर शादी कर ली.” दीपक ने
उत्साहित हो कहा.
अशोक को वह कहावत याद आ रही थी कि सिगरेट के एक तरफ धुआँ और दूसरी ओर
गधा होता है. अब दीपक का चेहरा उसे गधे में परिवर्तित होता दिखने लगा, “नहीं की.”
दीपक आधी बची सिगरेट को एक कश में ही पी गया, “नहीं की. अबे क्यों
नहीं की जब लड़की थी राजी तो क्या करता काजी?”
“काजी यानि उसके पाजी बाप ने हमारी शादी नहीं होने दी. मैंने कोर्ट से
शादी की तारीख लेकर निशा को बता दिया था. पूरे दिन कोर्ट के बाहर इंतज़ार करता रहा
लेकिन निशा नहीं आयी.” अचानक अशोक की आखों में नमी छा गई.
“आई नहीं या फिर हो सकता है उसे आने ही नहीं दिया दिया गया हो.” दीपक
ने अशोक को सांत्वना देने का प्रयास किया.
अशोक थोड़ा नोर्मल होते हुए बोला, “उस शाम को निशा का फोन आया कि वह
मुझसे शादी नहीं कर सकती. उसने बताया कि उसके बाप ने उसके लिए मुझसे भी अच्छा लड़का
ढूँढा है. जिसके साथ वह खुश रहेगी.”
“तुझे लगता है कि निशा ने अपने आप यह कहा होगा.” दीपक ने उसे समझाने
की कोशिश की.
अशोक की आँखों में अचानक नमी की बजाय रक्त उतर आया, “अपने आप कहा हो
या फिर उससे कहलाया गया हो. निशा को बेवफाई की सज़ा तो मिलकर रहेगी.”
“वो तो खैर तू दे ही देगा, लेकिन एक बात बता तुझे कैसे पता चला कि
निशा आज हनुमान मंदिर में आ रही है.” दीपक ने अपनी उलझन दूर करनी चाही.
अशोक अजीब से अंदाज में मुस्कुराया, “निशा के पति की फेसबुक प्रोफाइल
में मैं लड़की का फर्जी एकाउंट बना कर निशा की शादी के अगले रोज ही बैठ गया था. दो
दिन पहले ही उसने फेसबुक पर अपडेट डाला था कि हनीमून मनाने के बाद आज हनुमान मंदिर
में हवन का आयोजन करवाएगा.”
“हा हा हा यार ये फेसबुक ने तो लोगों की लाइफ ही बदलकर रख दी है.
नहाना, धोना, हगना सब फेसबुक पर ही होता है. लाइक और कमेंट के लालच में लोग अपने
घर की औरतों की ऐसी नुमाइश करते हैं जैसे फेसबुक न हो गई कोई रंडी बाज़ार हो गया.
फेसबुक के जरिये एक-दूसरे के बेडरूम तक की खबर लोगों को रहने लगी है.” दीपक दिल
खोलकर हँसा.
अशोक के चेहरे से तो मानो हँसी पास आकर छिटककर अलग हो जा रही थी, “बस
यहीं कार रोक ले. यहाँ से पाँच सौ मीटर आगे ही मंदिर है. तू मुझे यहीं उतारकर
मंदिर से करीब पाँच सौ मीटर दूर जाकर मेरा इंतज़ार करना और मेरे मोबाईल की मिस्ड
काल मिलते ही कार स्टार्ट करके भागने के लिए तैयार रहना.”
“ओके बॉस! पर एक बात तो बता. तूने निशा से बिलकुल सच्चा वाला ही प्यार
किया था न कहीं ये टाइम पास वाला प्यार तो नहीं था. अगर टाइम पास वाला था तो रिस्क
मत ले अपनी जान का.” दीपक ने अशोक को टोकते हुए कहा.
अशोक का खून खौल उठा, “साले पहली बात तो ये कि तुझे बचपन से समझाता आ
रहा हूँ, कि कभी शुभ काम में जाते हुए किसी को टोका नहीं जाता. दूसरी बात कि मैंने
निशा से बिलकुल सच्चा वाला प्यार ही किया था और उसने फिर भी मुझे धोखा दिया और इसी
की सज़ा उसे देने जा रहा हूँ.”
दीपक ने अशोक से उलझना मुनासिब नहीं समझा और चुपचाप उसे अपने मकसद में
कामयाब होने की दुआ देते हुए जाने दिया. करीब आधा घंटा ही बीता था कि अशोक कार का
दरवाजा खोलकर दीपक के बगल में आकर बैठ गया.
“तूने तो आने से पहले मिस्ड काल मारने को कहा था. निशा का कामतमाम कर
आया?” दीपक ने हैरान हो पूछा.
“नहीं” अशोक का जवाब मिला.
“नहीं. क्यों नहीं टपकाया उसे? साले उसने तुझे धोखा दिया था. मतलब कि
आज हमने बिना-बात में ऐसी-तैसी मरवाई और पचास हजार का खून हुआ सो अलग.” दीपक अचानक
तैश में आ गया.
अशोक के चेहरे पर शांति थी, “तूने मुझसे जाते हुए पूछा था न कि मैंने निशा
को बिलकुल सच्चा वाला प्यार ही किया था. हाँ मैंने उससे बिलकुल सच्चा वाला प्यार
ही किया था. यहाँ से मैं गया तो था उसे इस दुनिया से दूर भेजने के लिए, लेकिन जब
निशा का मासूम चेहरा देखा तो विचार बदल गया. वह तो मुझे बहुत प्यार करती थी. शायद
रही होगी कोई उसकी भी मजबूरी. अगर उससे मेरी शादी नहीं हो पाई तो उससे मेरा प्यार
खत्म तो नहीं हो गया. क्या प्रेम केवल दो शरीरों का ही मिलन है? दो आत्माओं का
मिलन भी तो प्रेम ही होता है. निशा प्रत्यक्ष रूप से मेरी न हो सकी पर अप्रत्यक्ष
रूप से सदा मेरी ही रहेगी और मैं भी उसे यह अहसास दिलाऊँगा कि मेरे दिल में उसके
लिए कोई मैल नहीं है. उसे जब भी मेरे
सच्चे प्यार का अहसास होगा तो वह अपने फैसले पर जरूर पछताएगी और एक दिन ऊपरवाले से
दुआ माँगेगी कि अगले जन्म में जीवनसाथी के रूप में उसे मैं ही मिलूँ.”
“तुम साले आशिक लोगों को भी भगवान चुनकर ही बनाता है.” इतना कहकर दीपक
ने कार दौड़ा दी.
सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!