आज उषा फिर देर से आई ।
कुछ पूछने को लपकी ही थी कि उसका चेहरा देख रुक गई, वह सिर पर पल्लू रखे चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी ।
वह अंदर आई और चुपचाप बर्तन उठाये और धोने बैठ गई । उसकी एक आँख पूरी काली थी चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे ।
कुछ न पूछना ही मुझे ठीक लगा । काम निपटा कर वह अंदर आई । मुझसे रहा न गया मैंने पूंछ ही लिया – “उषा क्या बात है आज फिर तुम्हारे पति ने तुम्हें .......”
बात पूरी भी न हो पाई कि वह बीच में ही काट कर बोली – “ नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है। अम्मा ने
कहा था कि पति की हर बात, हर काम उसका परसाद समझ सिर माथे लगाना। पति ही तुम्हारा देवता है ।
वह अंदर आई और चुपचाप बर्तन उठाये और धोने बैठ गई । उसकी एक आँख पूरी काली थी चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे ।
कुछ न पूछना ही मुझे ठीक लगा । काम निपटा कर वह अंदर आई । मुझसे रहा न गया मैंने पूंछ ही लिया – “उषा क्या बात है आज फिर तुम्हारे पति ने तुम्हें .......”
बात पूरी भी न हो पाई कि वह बीच में ही काट कर बोली – “ नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है। अम्मा ने
कहा था कि पति की हर बात, हर काम उसका परसाद समझ सिर माथे लगाना। पति ही तुम्हारा देवता है ।
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!