शहर का रेलवे स्टेशन , बस स्टैण्ड , डाकघर, अन्य सरकारी दफ्तर ....सब धूं-धूं करके जल रहे थे , उनसे उठते धुएँ से आकाश अट चुका था , पुलिस बेकाबू भीड़ पर नियंत्रण पाने में निरर्थक सिद्ध हो चुकी थी , उग्र भीड़ नौकरियों में पारित एस.सी. , ओ बी. सी.के आरक्षण विरोध में नारे लगा रही थी । कितने ही शो रूम व दुकानें लूटी गयीं । वह इन सब में बहुत बढ़ चढकर भाग ले रहा था। उसके हाथों में जूते व घड़ियाँ थीं , सब उसे शाबाशी दे रहे थे। नारे लगाते- लगाते उस युवक ने मुझसे पूछा -'भाई साहब ! यह आरक्षण क्या चीज है ?'
'आपको नहीं पता ?' मैंने पूछा । उसका जवाब था- 'नहीं ।'
'फिर यह सब किस लिए कर रहे हो' ,पूछा, तो उसने घड़ियाँ दिखाते हुए कहा- ' लूट के लिए…. ' ! सुनते ही शरीर गलने सा लगा , सोच ने धिक्कार कर कहा -तू लुटेरों के साथ है , यह लूटपाट चल रही है ,......आरक्षण विरोध नहीं...।।
'आपको नहीं पता ?' मैंने पूछा । उसका जवाब था- 'नहीं ।'
'फिर यह सब किस लिए कर रहे हो' ,पूछा, तो उसने घड़ियाँ दिखाते हुए कहा- ' लूट के लिए…. ' ! सुनते ही शरीर गलने सा लगा , सोच ने धिक्कार कर कहा -तू लुटेरों के साथ है , यह लूटपाट चल रही है ,......आरक्षण विरोध नहीं...।।
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!