इन दिनों मामा जी बहुत दुखी हैं। कारण
उनके भांजे ने उनकी लुटिया डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने तो अपने
भांजे को प्यार-दुलार पूरा दिया और इतना दिया, कि उसका व्यापार चलते-चलते दौड़ने
लगा, लेकिन भांजा बड़ा बेकार निकला और उसने अपने मामा की ऐसी-तैसी करवा डाली। वैसे मामा
और भांजे के बीच यह समस्या आज की नहीं है,
बल्कि यदि हम द्वापर युग की ओर चलें तो पायेंगे, कि मामा कंस की लुटिया भी उसके
भांजे कृष्ण ने ही डुबोई थी। बेचारा मामा कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता
था, लेकिन जब उसे आकाशवाणी द्वारा ज्ञात हुआ, कि उसकी बहन की कोख से उत्पन्न संतान
ही उसका वध करेगी, तो सोचिए उसके हृदय पर भला
क्या बीती होगी। उसने इस समस्या से निपटने का भरकस प्रयत्न किया, लेकिन मामा की उस
युग में भी किस्मत खोटी ही थी और आखिर कंस मामा का संहार भांजे कृष्ण के हाथों
होकर ही रहा। उस दिन के बाद मामा और भांजे दोनों की ऐसी कैमिस्ट्री बिगड़ी, कि
देहात में रहने वाले मामा और भांजे उस समय अलग-अलग रहने में ही अपनी खैर समझते
हैं, जब आकाश में बिजली कड़कती है। कहावत है कि यदि ऐसे समय में मामा और भांजे
साथ-साथ रहेंगे, तो बिजली किसी के भी ऊपर गिर सकती है. ऐसा हुआ भी है, लेकिन हर
बार बिजली के प्रकोप का शिकार बेचारा कोई न कोई मामा ही हुआ है। बिजली गिरने के
पीछे कारण बताया जाता है, कि बलराम और कृष्ण से पहले माँ देवकी के गर्भ से एक
कन्या पैदा हुई थी, जो जन्म लेते ही कंस मामा के प्रकोप का शिकार हो गई और अब वह भांजी बिजली के रूप में अपने मामा कंस के अत्याचार का बदला सभी मामाओं से ले रही है। ऐसा नहीं है, कि हर बार भांजे ने ही
मामा की लुटिया डुबोई हो। इतिहास में एक मामा ऐसा भी हुआ है, जिसने एक नहीं सैकड़ों
भांजों की लुटिया डुबोई हैं। मामा शकुनि को आप सब इतनी जल्दी भूल गये। अपनी बहन
गांधारी का दृष्टिहीन धृतराष्ट्र के साथ विवाह का प्रतिशोध शकुनि ने अपने भांजे कौरवों
का नाश करके लिया था कि नहीं? हालाँकि इतिहास में शायद शकुनि ही इकलौता मामा होगा,
जो भांजो के हाथों बर्बाद नहीं हुआ। वरना हर बार बेचारे मामा ने ही भांजे के हाथों
मुँह की खाई है। अब देखिए आधुनिक काल में भांजे ने मामा की अच्छी-खासी चलती रेल की
रफ़्तार को अपनी करतूतों से इमरजेंसी ब्रेक लगाकर रोक दिया। बेचारे मामा जी संसद
में अपनी पार्टी के सांसदों को सँभालते-सँभालते अपना वक्त गुज़ार रहे थे और एक दिन सौभाग्य
से रेल से मेल हुआ था, लेकिन मूर्ख भांजे ने ऐसा खेल खेला, कि अपने साथ-साथ मामा
को भी फेल कर डाला। हालाँकि मामा इस बात को भी भली-भांति जानते हैं, कि वह ऐसे महान
साम्राज्य के सिपहसालार हैं, जहाँ ऐसी छोटी-मोटी चोरियों से चोरों का कुछ नहीं
बिगड़ता, लेकिन वक्त का क्या पता कि ऊँट कब और किस ओर करवट लेकर बैठ जाए। अब मामा
अपनी किस्मत को कोस रहे हैं, कि काहे को ऐसा नालायक भांजा मिला। जिसे लाड़ करने का
ये सिला मिला. इन दिनों अपने दुखते कलेजे पर हाथ रखकर मामा मन ही मन गुनगुना रहे
हैं, “अच्छा सिला दिया भांजे ने लाड़-प्यार का” और जनता मुस्कुरा कर कह रही है,
“फँस गये रे मामू।”
रचनाकार: सुमित प्रताप सिंह
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