समाज कल्याण विभाग के प्रमुख रमाशंकर अपने माता-पिता की एक मात्र संतान थे| उनके माता -पिता ने उनका विवाह बड़े ही धूम-धाम से पास ही के गाँव के नगर सेठ की बेटी सीता से करा दिया था | रामशंकर के माता-पिता सुन्दर सुशील बहू को पाकर बहुत खुश थे | सीता सुन्दर तो थी ही साथ ही पढ़ी-लिखी और समझदार भी थी| रमाशंकर भी इतनी गुणवान पत्नी पाकर बहुत खुश था |
शादी के एक साल बाद घर मे बच्चे की किलकारी गूंजने की खबर से सब खुश थे| अपने वंश को आगे बढ़ता जान सब खुश थे, सब चाहते थे कि सीता के गर्भ पुत्र रत्न की प्राप्ति हो, पर सीता को उन सब की ये बात पसंद नहीं आई। लड़के की जगह लड़की भी पैदा हो सकती है पर वह किसी से कुछ कह नहीं सकी और सीता ने बेटी को जन्म दिया | घर के सारे लोग नाराज हुए पर इसमें उसका क्या दोष था | बातो -बातो मे सीता ने अपने पति को समझाया कि पति-पत्नी मे से किसी एक मे कुछ कमी रहती है तो बेटी होती है वैसे सीता को पता था पर पति को स्पष्ट बता नहीं सकती, घुमा फिरा के बताया तब भी रमाशंकर भड़क गये और गुस्से से सीता पर हाथ भी उठाया |
अभी बेटी एक साल की भी नहीं हुई सीता को दूसरे बच्चे के लिए मजबूर किया पर दूसरी भी बेटी हुई| सीता पर वापस गुस्सा किया और कहा की तुम ‘हमे बेटा कब पैदा कर के दोगी?’जैसे बेटे की चाह ने रामशंकर को अँधा कर दिया था | फिर तीसरे साल सीता को बच्चे के लिए मजबूर किया गया | इस बार रामशंकर को किसी ने लिंग-परिक्षण कराने की सलाह दी| रमाशंकर ने सीता को जबरदस्ती जाँच कराने अपनी माँ के साथ भेजा | पता चला सीता के गर्भ मे दो बेटियाँ पल रही है, रमाशंकर की माँ ने बेटे को फोन से जानकारी दी कि जुड़वाँ बेटियाँ आने वाली है, उस वक़्त रमाशंकर सभा मे ‘’बेटी बचाओ’’ विषय पर भाषण देने गये थे| रमाशंकर ने कहा कि ‘दोनों बेटियों को निकलवा दो, अब और बेटी नहीं चाहिए| वो भाषण देने लगा| जब सीता और उसकी सास डॉ. के पास गर्भ गिराने की बात करने को गयी तो डॉ. ने कल आने को कहा, फिर जब दोनों वापस घर के लिए निकली तो सीता ने कुछ बहाना बना कर सास को घर भेज दिया और खुद सभा स्थल पहुँच गयी और अपने पति के असल विचारो की पोल खोल दी| ये सब सीता से जानकर विभाग ने रमाशंकर को उसी वक़्त पद से हटाया और पूरे विभाग वालो ने एक स्वर मे रमाशंकर की आलोचना करी कि ''दीपक तले अँधेरा'' इसे ही कहते है| सीता ने तलाक लेकर अलग रहने का फैसला किया |
सीता समझदार तो थी ही, उसने दोनों बेटियों को जन्म दिया और अस्पताल के डॉ., से लिखवा लिया कि बेटी होने का कारण खुद रमाशंकर था; और सब को दिखाया समाज कल्याण विभाग ने सीता की बहादुरी के लिए वो पद उसे दे दिया जो उसके पति के पास था | | सीता की समझदारी से उसकी दोनों बेटियाँ बच गयी और दोनों डॉ. बन गयी अब सीता अपनी चारो बेटियों के साथ रहती है | रमाशंकर अब अपनी करनी पर पछता रहा है |उसकी चारो बेटियाँ ऊँचे पद पर काम कर रही है; बेटे की चाह ने उसका सब कुछ बर्बाद कर दिया था |
रचनाकार: श्रीमति शांति पुरोहित
बीकानेर, राजस्थान
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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