पुस्तक: दोस्ती(कविता-संग्रह)
मूल्य: 195 रुपये
लेखक: विनोद पाराशर
प्रकाशक: यश पब्लिकेशंस
1/10753,गली नं.3,सुभाष पार्क,
नवीन शाहदरा,कीर्ति मंदिर के पास,
दिल्ली-110032 मो:09899938522
ई-मेल: yashpublicationdelhi@gmail.com
वेबसाइड: www.yashpublications.com
मित्रों!
लगभग 20 वर्ष बाद,मेरा दूसरा कविता-संग्रह’दोस्ती’ प्रकाशित हुआ
है.पुस्तक का प्रकाशन यश पब्लिकेशन्स,शाहदरा दिल्ली ने किया है.पुस्तक की भूमिका वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रताप सहगल ने लिखी है.साहित्यिक ई-पत्रिका ’सर्जनगाथा’ के संपादक श्री जयप्रकाश ’मानस’ व विदेश में रहते हुए हिंदी ब्लागिंग का परचम लहराते श्री समीर लाल ’समीर’ जी ने भी इस पुस्तक पर अपनी महत्वपूर्ण टिप्पाणियाँ दी है.
फिलहाल उपर पुस्तक का आवरण पृष्ठ व
नीचे श्री प्रताप सहगल द्वारा लिखी गयी पुस्तक की भूमिका आपके अवलोकन हेतु प्रस्तुत है:-
भूमिका
लगभग
20 वर्षों के अंतराल के बाद विनोद पाराशर का नया कविता-संग्रह’दोस्ती’ सामने आ रहा
है I जब किसी भी कवि के पहले और दूसरे कविता-संग्रह में इतना
लंबा अंतराल हो, तो यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि कवि ने अपनी कविता-यात्रा
में क्या विकास किया है?
विनोद के पहले कविता-संग्रह ’नया-घर’
की कविताएँ-जीवन,रिश्तों और समाज के विभिन्न तबकों से जुड़ी हुई कविताएँ थीं I इस
कविता-संग्रह में भी यात्रा के यही बिंदु परिलक्षित होते हैं,लेकिन कविताओं में
व्यंग्य की मुद्रा पहले से अधिक धारदार हुई है I मसलन इसी
कविता-संग्रह की कविता ‘कवि सप्लाई केन्द्र’ में तो साफ़ नज़र आता है कि इस
कविता के बहाने विनोद ने समकालीन कविता में दुर्बोधता के प्रश्न पर व्यंग्य करते
हुए-सम्प्रेषणीयता को महत्वपूर्ण माना है,लेकिन साथ ही कविता के नाम पर हो रही
चुटकुलेबाजी को भी उन्होंने नहीं बख्शा है I
इस कविता-संग्रह में ऐसी छोटी-छोटी कविताएँ भी
हैं जो अपने छोटे कलेवर में भी गंभीर अर्थ देती हैं I मिसाल
के तौर पर-‘दंगा:एक’
‘जब भी-
दंगा होता है,
आदमी
लिबास में भी
नंगा होता है I ‘
इसी तरह से ’ताज़ा अखबार’ कविता को देखा जा सकता है I कविता है-
‘लूटपाट
भ्रष्टाचार
बलात्कार
बासी ख़बरें
ताज़ा अखबार’
इस कविता में ऊपर आये हुए शब्द, तब तक अभिधावाची ही रहते हैं,जब-तक उसमें ‘बासी ख़बरे,ताज़ा अखबार’-शब्द नहीं जुड़ जाते I यही छोटी-छोटी दो पंक्तियाँ, कविता को आलौकित कर देती हैं और अभिधावाची शब्दों की ध्वन्यात्मकता समझ में आने लगती है. विनोद की इस तरह की कई कविताओं का मुहावरा बहुत सतही व इकहरा लगता है,लेकिन अंत तक आते-आते,कविताओं के अर्थ बदल जाते हैं यह विनोद की कविताओं की शक्ति है I यही शक्ति,हमें,‘शरीफ़ आदमी’,‘एक साहित्यकार का रोज़नामचा’,‘वेतन आयोग’,और ‘जाँच-आयोग’-जैसी कविताओं में भी
नज़र आती है I
विनोद ने अपने कुछ गीतों व गज़लों को भी इसी संग्रह में जोड़
दिया है I ग़ज़ल के मीटर की
बात करें,तो भले ही वो मीटर पर पूरी नहीं उतरतीं, लेकिन भाव के स्तर पर कुछ कहती
नज़र आती हैं I कुल मिलाकर कहा
जा सकता है कि व्यंग्य कविता में विनोद कहीं अधिक समर्थ नज़र आते हैं और संभवत: आने
वाली कविताएँ भी उसी ओर जाने का संकेत है I कामना करता हूँ कि वे और भी बेहतर लिखें
और हिंदी कविता के संसार को और भी समृद्ध करें I
प्रताप सहगल
निवास
एफ-101
राजौरी गार्डन
नई दिल्ली-110027
बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteNew post: कुछ पता नहीं !!!
New post : दो शहीद
धन्यवाद!
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