विषय: पर्यावरण
आहट नव युग की
हुई ,नई क्रान्ति का योग
कल-कारखानों से
घिरी, हुए खेत उपयोग।
जंगल सब कटने
लगे ,बंजर होते खेत
शहर उगे
कंक्रीट के , उन्नति के संकेत।
कारखानों की
शक्ति को ,जले कोयला खूब
धुआँ उगलती चिमनियाँ, बिगड़े नभ का रूप।
हवा प्रदूषण से भरी ,विष कण से भरपूर
शुद्ध पवन
दुर्लभ हुई , साँसें हैं मजबूर।
कूड़ा- करकट
फेंक के ,नदियाँ ढोती मैल
जल प्रवाह अवरुद्ध हो ,रहा कलुष अब फ़ैल।
जल प्रवाह अवरुद्ध हो ,रहा कलुष अब फ़ैल।
तापमान अब बढ़
रहा ,पिघल रहे हिमखंड
सैलाबों का भय बना ,हों तूफ़ान प्रचंड।
सैलाबों का भय बना ,हों तूफ़ान प्रचंड।
विश्व विनाश कगार पे ,करें बचाव तुरंत
आने वाली
पीढ़ियाँ,जी पायें सुखवंत।
रचनाकार: सुश्री ज्योतिर्मयी पन्त
पर्यावरण पर सामयिक और सटीक रचना : बहुत अच्छा
ReplyDeleteNew post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
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