नई दिल्ली: 9 नवंबर, 2012 को साहित्य अकादमी, रविन्द्रभवन, नई दिल्ली के सभागार में 'रहगुज़र' पुस्तक का लोकार्पण एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया | पंडित सुरेश नीरव ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता ने और अरविन्द कुमार ने इसके सफल संचालन की बागडोर संभाली | यहाँ सत्यव्रत चतुर्वेदी, किरण वालिया, कुंवर बैचैन और कई सुप्रसिद्द कविजनो को सुनने का सौभाग्य मिला तथा अरुण सागर, ‘रहगुज़र’ के लेखक के जोशीले काव्य पाठ को सुना जिससे उनके ग़ज़ल संग्रह का स्वत: ही अंदाज़ हो जाता है |
पुरुषोत्तम वज्र की पंक्तियाँ
“पेंच लगाने का मन हो तो ढील ध्यान से दिया करो,
कन्नो से कटने के बाद और लूट लिया करते हैं”
राज मणि का अपनी रचना में माँ के अनवरत कार्य को कुम्हार के चाक से तुलनात्मक प्रयोग ,
बी एल गौड़ का गाँव और नगर को तोलना और कहना कि
"क्या मिला आके नगर
धूल, धुंआ और धक्कड"
कुंवर बैचैन का गीत ( अंकगणित , बीजगणित और रेखा गणित का तालमेल )
बिजेंद्र त्रिपाठी का ''घर '' शाम '' को प्रतिबिंबित करना
कैसा है विरोधभास
जब हम घर से दूर होते है तब ही उसके सबसे निकट होते हैं
राहुल उपाध्याय, सुधाकर, हिन्दुस्तान टाइम्स के पत्रकार दिनेश वत्स को भी सुनने का अवसर मिला|इनके अतिरिक्त इस कार्यक्रम में किशोर श्रीवास्तव, नमिता राकेश, आदिल रशीद, धीरज चौहान, उनके पिता अशोक वर्मा (''डाइरेक्ट दिल से के लेखक) इत्यादि लेखक व साहित्यकार भी मौजूद थे|
पंडित सुरेश नीरव के ज्ञान की अविरल , अनंत गंगा में स्नान कर मन तृप्त हुआ | अरुण और सागर का मेल , धुप के सलाइयों छाँव का स्वेटर बुनना ‘’ कोट करने लायक पंक्तियाँ लगीं | उनका विज्ञान के छात्र होते हुए भी हिंदी साहित्य में योगदान देना वास्तव में प्रशंसनीय लगा |
रिपोर्ट- सुश्री पूनम माटिया
दिलशाद गार्डन, दिल्ली-95
Acha bura Apke andar he ....... Ap Kyshe he
ReplyDeleteप्रदीप जी ...........शुक्रिया ..............परन्तु मुझे ये प्रविष्टि वहाँ नज़र नहीं आई
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