इन दिनों पर्यावरण दिवस का काफी शोर शराबा है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इस एक दिन की चिन्ता से पर्यावरण के क्षेत्र में कोई बहुत बडी क्रांति होने वाली नहीं है। कहते है कि वन है तो जीवन है लेकिन जिस तरह से प्रदूषण बढ रहा है, पर्यावरण संतुलन बिगड रहा है, पेड कट रहे हैं, वन सिमट रहे है उसे देखकर तो यही लगता है कि अब न बचेंगे वन और न बनेगा जीवन। यदि हमने पर्यावरण बचाने का सतत और ठोस प्रयास शुरू न किया।
वृक्ष लगाने और वृक्ष बचाने की पुरानी परम्परा रही है। हमारे यहां तो तीज त्यौहारों को भी वृक्षों को जोड़ा गया और त्यौहारों पर भी वृक्षों की पूजा होती है। इसके बावजूद पिछले वर्षों से जिस तरह वृक्षों का कटना बढा हैं और जंगलों की जगह कंक्रीट के जंगल उग आए है उससे पर्यावरण को बहुत बडा खतरा उत्पन्न हो गया है। इसके संकेत मिलने भी लगे हैं। पर्यावरण पर आए खतरों से जलवायु परिवर्तन का खतरा भी उत्पन्न हो गया है और यह प्राणियों के जीवन पर भी आने वाले संकट का अहसास कराने लगा है।
राष्ट्रीय वन नीति को अगर देखे तो इसके हिसाब से देश में 33 फीसदी वन क्षेत्र होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। आंकडे बताते है कि देश में वन क्षेत्र घटकर अब लगभग 21 फीसदी रह गया है। यह भी तब है जब उडीसा, छत्तीसगढ, हिमाचल प्रदेश में अभी काफी वन क्षेत्र बचा है। यदि अलग - अलग राज्यों में देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में तो वन क्षेत्र 20 फीसदी से भी कम होगा। इसमें भी घने वृक्षों वाला वन क्षेत्र का प्रतिशत तो दहाई की संख्या में भी शायद ही पहुंचे। इसके बावजूद वृक्षों की कटाई रूक रही हो तो ऐसा नही लगता। वृक्षारोपण भी बढ नहीं रहा है। सरकारी आंकडो में भले ही हर वर्ष लाखों की संख्या में पौधे लगाने की बातें की जाती हों, लेकिन असल में कितने पौधे लगाए जाते हैं और उनमें से कितने फलते फूलते है, किसी से छिपा नहीं है। इस अर्थ युग में यदि अर्थ के हिसाब से देखें तो भी एक वृक्ष अपने जीवन काल में हमें लाखों रूपया मूल्य की तो आक्सीजन ही उपलबध करा देता है।
यह सुखद है कि पर्यावरण दिवस के बहाने ही सही पर्यावरण के प्रति जागरूकता आ रही है और पर्यावरण बचाने की बातें की जा रही हैं, लेकिन कटु सत्य यह है कि इन कोरी बातों में एक दिन में ही कुछ होने वाला नहीं है। पर्यावरण को बचाना है और प्राणियों का जीवन बचाना हैं तो वृक्ष लगाने होंगे और वृक्षों का कटना रोकना होगा। यदि सभी लोग पांच-पांच पौधे भी लगाएं और उनकी पूरी देखभाल करें तो परिणाम सुखद होंगे लेकिन यह सब कुछ सिर्फ एक दिन सोच लेने से भर से नहीं होगा, हाथ पैर भी चलाने पडेंगे।
संजय सक्सेना
पत्रकार व समाज सेवक,
इटावा, उत्तर प्रदेश
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निवेदक-
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