(सैनिक का बलिदान अकेला नहीं है। उसके साथ उसके परिजन भी बलिदान करते हैं। शहीद का शव ताबूत में परिजनों के बीच आता है, कल्पनाओं में मैं वहां खड़ा हूं और सोच रहा हूं…….. काश! इस शहीद को मैं आवाज दूं और ये जी उठे...)
मातृभूमि की रक्षा से देह के अवसान तक
आओ मेरे साथ चलो तुम सीमा से शमशान तक
सोये हैं कुछ शेर यहां पर उनको नहीं जगाना
सोये हैं कुछ शेर यहां पर उनको नहीं जगाना
टूट न जाए नींद किसी की धीरे धीरे आना
आंसू दो टपका देना पर ताली नहीं बजाना
आंसू दो टपका देना पर ताली नहीं बजाना
चाहता हूं तुझको
तेरे नाम से पुकार लूं,
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूं
जी उठो तुम और मैं आरती उतार लूं
धूल में मिला दिया
घुसपैठियों की चाल को
गर्व से ऊंचा उठाया भारती के भाल को
दुश्मनों को रौंदकर जिस जगह पे तू मरा
मैं चूम लूं दुलार से पूजनीय वो धरा
दीप यादों के जलाऊं काम सारे छोड़कर…
चाहता हूं भावनाएं तेरे लिए वार दूं,
ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं...
गर्व से ऊंचा उठाया भारती के भाल को
दुश्मनों को रौंदकर जिस जगह पे तू मरा
मैं चूम लूं दुलार से पूजनीय वो धरा
दीप यादों के जलाऊं काम सारे छोड़कर…
चाहता हूं भावनाएं तेरे लिए वार दूं,
ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं...
सद्भावना की ओट में शत्रु ने छदम किया,
तूने अपने प्राण दे ध्वस्त वो कदम किया
नाम के शरीफ थे फौज थी बदमाश उनकी,
इसीलिए तो सड़ गयीं कारगिल में लाश उनकी
लौट आया शान से तू तिरंगा ओढ़कर…
चाहता हूं प्यार से तेरी राह को बुहार दूं,
तूने अपने प्राण दे ध्वस्त वो कदम किया
नाम के शरीफ थे फौज थी बदमाश उनकी,
इसीलिए तो सड़ गयीं कारगिल में लाश उनकी
लौट आया शान से तू तिरंगा ओढ़कर…
चाहता हूं प्यार से तेरी राह को बुहार दूं,
ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं...
कर गयी पैदा तुझे उस कोख का एहसान है,
सैनिकों के रक्त से आबाद हिन्दुस्तान है
धन्य है मइया तुम्हारी भेंट में बलिदान में,
झुक गया है देश उसके दूध के सम्मान में
दे दिया है लाल जिसने पुत्रमोह छोड़कर…
चाहता हूं आंसुओं से पांव वो पखार दूं,
सैनिकों के रक्त से आबाद हिन्दुस्तान है
धन्य है मइया तुम्हारी भेंट में बलिदान में,
झुक गया है देश उसके दूध के सम्मान में
दे दिया है लाल जिसने पुत्रमोह छोड़कर…
चाहता हूं आंसुओं से पांव वो पखार दूं,
ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं
लाडले का शव उठा बूढ़ा चला शमशान को,
चार क्या सौ-सौ लगेंगे चांद उसकी शान को
देश पर बेटा निछावर शव समर्पित आग को,
हम नमन करते हैं उनके, देश से अनुराग को
स्वर्ग में पहले गया बेटा पिता को छोड़कर…
इस पिता के पांव छू आशीष लूं और प्यार लूं,
चार क्या सौ-सौ लगेंगे चांद उसकी शान को
देश पर बेटा निछावर शव समर्पित आग को,
हम नमन करते हैं उनके, देश से अनुराग को
स्वर्ग में पहले गया बेटा पिता को छोड़कर…
इस पिता के पांव छू आशीष लूं और प्यार लूं,
ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं...
पाक की नापाक जिद में जंग खूनी हो गयी,
न जाने कितनी नारियों की मांग सूनी हो गयी
गर्व से फिर भी कहा है देख कर ताबूत तेरा,
देश की रक्षा करेगा देखना अब पूत मेरा
कर लिए हैं हाथ सूने चूडि़यों को तोड़कर
वंदना के योग्य देवी को सदा सत्कार दूं,
न जाने कितनी नारियों की मांग सूनी हो गयी
गर्व से फिर भी कहा है देख कर ताबूत तेरा,
देश की रक्षा करेगा देखना अब पूत मेरा
कर लिए हैं हाथ सूने चूडि़यों को तोड़कर
वंदना के योग्य देवी को सदा सत्कार दूं,
ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं...
सावन का अंतिम दिवस दोहरायेगा इस बात को,
झेलती मासूम बहना इस विकट आघात को
ताकती राखी लिए तेरी सुलगती राख में,
न बचा आंसू कोई उस लाडली की आंख में
ज्यों निकल जाए कोई नाराज हो घर छोड़कर…
चाहता हूं भाई बन मैं उसे पुचकार दूं,
झेलती मासूम बहना इस विकट आघात को
ताकती राखी लिए तेरी सुलगती राख में,
न बचा आंसू कोई उस लाडली की आंख में
ज्यों निकल जाए कोई नाराज हो घर छोड़कर…
चाहता हूं भाई बन मैं उसे पुचकार दूं,
ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं...
कौन दिलासा देगा नन्हीं बेटी नन्हें बेटे को,
भोले बालक देख रहे हैं मौन चिता पर लेटे को
क्या देखें और क्या न देखें बालक खोए खोए से,
उठते नहीं जगाने से ये पापा सोए - सोए से
चला गया बगिया का माली नन्हें पौधे छोड़कर…
चाहता हूं आज उनको प्यार का उपहार दूं,
भोले बालक देख रहे हैं मौन चिता पर लेटे को
क्या देखें और क्या न देखें बालक खोए खोए से,
उठते नहीं जगाने से ये पापा सोए - सोए से
चला गया बगिया का माली नन्हें पौधे छोड़कर…
चाहता हूं आज उनको प्यार का उपहार दूं,
ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं...
अंत में एक चेतावनी............
विध्वंस की बातें न कर बेवजह पिट जायेगा,
तू मिटेगा साथ तेरा वंश भी मिट जाएगा
कुछ सीख ले इंसानियत तेरा विश्व में सम्मान हो,
हम नहीं चाहते तुम्हारा देश कब्रिस्तान हो
उड़ चली अग्नि अगर सारे बंधन तोड़कर…
चाहता हूं आज फिर पाक को ललकार दूं,
चाहता हूं तुझको तेरे नाम से पुकार लूं,
तू मिटेगा साथ तेरा वंश भी मिट जाएगा
कुछ सीख ले इंसानियत तेरा विश्व में सम्मान हो,
हम नहीं चाहते तुम्हारा देश कब्रिस्तान हो
उड़ चली अग्नि अगर सारे बंधन तोड़कर…
चाहता हूं आज फिर पाक को ललकार दूं,
चाहता हूं तुझको तेरे नाम से पुकार लूं,
जी उठ तू ए शहीद और मैं आरती उतार लूं...
सादर नमस्ते!
ReplyDeleteनमन शहीदों को और नमन आपकी इस रचना को...
ReplyDeleteजय हिंद!
वंदे मातरम!