(१)
एक हाँ या ना
बदल देती कभी
सारी ज़िंदगी.
(२)
आंसू को रोको
पोंछेगा नहीं कोई
स्वार्थी दुनियां.
(३)
रिश्तों की लाश
उठायें कन्धों पर
कितनी दूर?
(४)
पाला था जिन्हें
बिठा पलकों पर
चुराते आँखें.
(५)
सुखा के गयी
प्रेम का सरोवर
स्वार्थों की धूप.
(६)
बड़े हैं घर
मगर दिल छोटा
वक़्त के रंग.
कैलाश शर्मा
एक हाँ या ना
बदल देती कभी
सारी ज़िंदगी.
(२)
आंसू को रोको
पोंछेगा नहीं कोई
स्वार्थी दुनियां.
(३)
रिश्तों की लाश
उठायें कन्धों पर
कितनी दूर?
(४)
पाला था जिन्हें
बिठा पलकों पर
चुराते आँखें.
(५)
सुखा के गयी
प्रेम का सरोवर
स्वार्थों की धूप.
(६)
बड़े हैं घर
मगर दिल छोटा
वक़्त के रंग.
कैलाश शर्मा
सुन्दर हाइकू
ReplyDeleteकम शब्दों अधिक बात. सार्थक हाइकू...
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