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Sunday, June 17, 2012

यात्रा संस्मरण: लुटेरे हैं दरबारी पहाड़ों वाली के


दाएँ से पिंडी रूप में माँ काली, माँ वैष्णो व माँ सरस्वती
      माँ वैष्णों देवी के दर्शन की इच्छा लिए अपनी माँदोस्त व उसकी माँ के साथ जम्मू रेलवे स्टेशन पर उतरा. कटरा रवाना होने से पहले हल्का-फुल्का नाश्ता किया, फिर सोचा कि एक जोड़ी चप्पल ली जाए. दुकान में पहुँचा तो 30 रूपये की चप्पलों का दाम था 130 रूपये. दाम फिक्स्ड था कोई कंसेशन नहीं. खैर हम कटरा की ओर बढे. पहाड़ों के मनोरम दृश्यों का आनन्द लेते हुए हम कटरा पहुँचे. जैसे ही हमने कटरा की जमीन पर पैर रखे हमारे सामने दलाल प्रकट हो गये व होटलों व दुकानों के बारे में जानकारी देने लगे. हम दलालों के चंगुल में फँसे बिना रैस्टोरैंट की ओर बढ़ लिए यहाँ दोपहर का महँगा भोजन किया या कहें कि करना पड़ा. इसके बाद माता वैष्णों देवी को चढ़ाने के लिए प्रसाद व श्रृंगार का सामान खरीदने के लिए एक दुकान में पहुँचे. दुकानदार ने सामान के औने-पौने दाम लगाये. यात्रा स्लिप लेकर हम बाढ़ गंगा पहुँचे. यहीं से यात्रा आरंभ होनी थी. मैं और मेरा दोस्त तो पैदल चल लेतेकिन्तु हम दोनों की माताएँ पैदल यात्रा में असमर्थ थीं. सो हमने विचार किया कि यात्रा के लिए किराए पर घोड़े कर लिए जायें. घोड़े वालों से बात की तो वे तीन गुना दाम पर अड़े रहे. मैंने सी.आर.पी.एफ. अधिकारियों से इस विषय में शिकायत की, किन्तु उन्होंने सहायता देने में अपनी असमर्थता दिखाई. इसके उपरांत वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के अधिकारियों से भी मिलाकिन्तु कोई हल नहीं निकला. तब ऐसा आभास हुआ कि कहीं सी.आर.पी.एफ.  वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की घोड़े वालों से मिली भगत तो नहीं. खैर हम घोड़े पर सवार होकर माँ वैष्णों के दर्शन को चल पड़े. घोड़े पर बैठकर पहाड़ चढ़ते हुए जब नीचे खाई की ओर नज़र जाती थी तो मन रोमांचित सा हो उठता था. रात में ऊँचाई से देखने पर कटरा जगमगाता हुआ बड़ा ही सुन्दर दिख रहा था. बीच-बीच में हम ब्रेक लेते रहे और खानपान करते हुए दुकानदारों द्वारा लुटते रहे. आखिरकार हम मुख्य भवन के पास पहुँचे. हमने सोचा कि पहले रात का भोजन ले लिया जाये. वहीँ पर स्थित ही एक छोटे से होटल में हमने भोजन किया जो कि बहुत महंगाबिलकुल बेकार व बेस्वाद था. हद तो तब हो गई जब 20 रूपये के सलाद के रूप में हमें खीरे के कुछ टुकड़े पेश कर दिए गए. हमने उस रद्दी होटल के संचालक से अपना विरोध जताया तो उसने टका सा जवाब दिया कि बाबू पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते हर चीज महँगी हो जाती है. हमने नहा धोकर करीब बजे सुबह माता वैष्णो देवी के दर्शन किये और भैरों बाबा को सलाम ठोंकने निकल पड़े. मान्यता यह है कि यदि माँ वैष्णो देवी के दर्शन के बाद भैरों बाबा के दरबार में हाजिरी नहीं लगाई तो समझो कि माँ वैष्णो देवी के दर्शन अधूरे रह गए. भैरों बाबा के दर्शन कर हम वापस कटरा की ओर चल दिये. हम दोनों की माताओं ने निश्चय किया कि वापसी में पैदल ही चलेंगी. वापसी में हम सभी बीच-बीच में रुककर आराम करते रहे और दुकानों से थोड़ा बहुत जलपान करते रहे और दुकानदारों के मनमाने दाम चुकाते रहे. अर्धकुमारी तक आते-आते मेरी माँ के पैरों ने जवाब दे दिया और दर्द के कारण आगे बढ़ने में अपनी असमर्थता दिखा दी. सो हमें घोड़े किराये पर लेने पड़े. उन्होंने तीन गुना दाम की बजाय ढाई गुना दाम ही हमसे वसूले. कितने भले मानस थे वे घोड़ेवाले. घोड़े पर उछलते हुए हम चारों प्राणी बाढ़ गंगा तक पहुँचे. वहाँ पहुँचकर हमने ऑटो करने के बारे में सोचा तो कोई भी ऑटोवाला 3 कि.मी.की दूरी के लिए 200 रुपये से कम में राजी नहीं हुआ. मजबूरी में हमने ऑटो पकड़ा और कटरा पहुँच गये. वहाँ भोजन करने के बाद हमने दिल्ली के लिए बस पकड़ी और कटरा भूमि को प्रणाम कर चल पड़े. लौटते हुए मन गुनगुना रहा था, "लुटेरे हैं दरबारी पहाड़ों वाली के." माँ वैष्णो देवी जाने क्यों अपने दरबारियों के लुटेरेपन को देखकर भी शांत बैठी हैं. कहीं यह प्रलय से पहले की शांति तो नहीं?

8 comments:

  1. sabhi ke sabhi chor aur lootere hain. saabh ki aapsi mili bhagat hai. aarti ke samay ki loot aap ne nahin dekhi. aagar dekh lete to maan aur kharab hota. crpf ka matlab chor rakshak police force hai
    is liye inse kissie tarah ki madad ki gunjaish rakhna waise hi hai jaise gadhe ke sir par sing dekhne ki tamanna

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    1. लगता तो कुछ ऐसा ही है...

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    2. sumit bhai,desh ke sabhi hisson me,raja se praja tak yahi loot khasot chal rahi hai,har koi avsar v majboori ka fayada utha raha hai.is parkriya se katara wale bhi pichhe nahi hain,ishwar v maa unhe sadbudhi de,

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    3. कीर्ति वर्धन जी इन दुष्टों को जाने कभी सद्बुद्धि आएगी भी अथवा नहीं...

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  2. hello sir i ally thank u . such mai mai bhi apne dost or mummi ke sah gaya tha tab mujhe bhi yahi lega .ya baat kewal vashno devi par hi nhi balki .neel kanth or bhut se mandir par lagu hoti ha .kyunke
    is duniya me bhagwan bhi pandito or mandir ke trasti ka hato ki katputli ha .jaisa wo chahate ha wase hi devi ya davta darshan dete ha bina unki izzazt ke bhagwan bhi darshan nhi dete.isliya mane to kisi bhi asi jagah jana hi band ker diya ha .agar bhagwan ha to apne maan mai hi ha warna kahi nhi

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    1. रवि भाई ऐसा कुछ नहीं है. भगवान किसी की बापौती या जागीर नहीं हैं. वह तो हम सभी के हैं. इसलिए कभी भी इस तरह की बात मत सोचना और उस परमपिता परमेश्वर पर सदैव विश्वास रखना और जहाँ तक उनके इर्द-गिर्द मौजूद दुष्टों की बात है तो उन्हें भी इसकी एक न एक दिन सज़ा अवश्य मिलेगी... जय माता की

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  3. सुमीत ... बहुत सही लिखा है !!! एक दम स्वाभाविक !!! ये तो खैर माता का दरबार है अगर कोई आम मंदिर भी हो तो भी "ऐसे लोग" पीछा नही छोडते और स्वाभाविक है जिस मन, आस्था और विश्वास से हम वहां जाते है उससे विपरीत ही वापिस लौटते है. चलिए पूरे प्रकरण मे एक बात अच्छी हुई कि माता के दरबार के दर्शन हो गए !!

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    1. मोनिका जी मन में बस यही संतुष्टि है, कि माता रानी के दर्शन हो गए...

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सुमित प्रताप सिंह,
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