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Thursday, January 2, 2014

नया साल... नया दिन...

नया साल...
नया दिन...
नयी सुबह...
नयी उम्मीदें....
नया जोश...
नया होसला....

चलो रविश’...

टूटी हुई माला को फिर
पिरोया जाये...

सहमे हुए सपनों को फिर से
संवारा जाये...

दरारें...
जो आ गयी हैं आँखों में,
उन्हें आंसुओं से पाटा जाये...

नमी....
जो जम चुकी है पलकों पर,
सूरज की तपिश से उसे पिघलाया जाये....

और

रेशा-रेशा में जो बिखरा है
मेरे अंदर...

चलो रविश’...

उसे फिर से
ईमारत में

तब्दील किया जाये |

रविश रवि
फरीदाबाद

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!