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Wednesday, August 28, 2013

अरज सुनो कृष्णा !!




मीरा बन बांट निहारूं ,ले नयनों में दर्श तृष्णा ,
तिल-तिल मरती यह प्रेम विरहिणी ,
स्मृति से निकल ,हो सदृश्य ,दो दर्श कृष्णा ।
विरह में तपते मन पर बादल बन बरसो कृष्णा ।।

कोयल सी कूकें बिसरा चुकी मैं ,
सब साज -श्रृंगार, हास विलास ठुकरा चुकी मैं ।
दर्शन दे जीवन से प्यार बढ़ा दो कृष्णा ,
साज-श्रृंगार, हास विलास लौटा दो कृष्णा ।।

प्रियमिलन के सावन गीतों में उपहास बनूं मैं ,
प्रिय संग सखी झूला झूले, संग किसके झूलूं मैं ।
सुनाकर तान बांसुरी की, सब उपहास झूठला दो कृष्णा ,
अपनी बांहो के झूले में झूला मुझे झूला दो कृष्णा ।।

छवि बदलती प्रकृति विरहाग्नि भडकाए ,
मुस्काते कोमल कुसुम भी ,ना मन को मेरे भाए ।
रंग भर दो मेरे मौसम में, अपनी छवि रचाकर कृष्णा ,
तितली सी चंचलता आ जाए ,पा जाऊं तुझे जो मेरे कृ
ष्णा ।।

( -राकेश खत्री - )

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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