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Tuesday, May 21, 2013

कविता: नीम


         

 फूलों से लदे
हरे-भरे नीम की महक 
दे जाती है मन को सुकून 
भले ही नीम कड़वा हो |

पेड़ पर आई जवानी 
चिलचिलाती धूप से 
कभी ढलती नहीं 
बल्कि खिल जाती है 
लगता, जैसे नीम ने  
बांध रखा हो सेहरा |

पक्षी कलरव  करते पेड़ पर 
ठंडी छाँव तले राहगीर 
लेते एक पल के लिए ठहराव 
लगता जैसे प्रतीक्षालय हो नीम |

निरोगी  काया के लिए
इन्सान क्यों नहीं जाता 
नीम की शरण 
बेखबर नीम तो प्रतीक्षा कर रहा
निबोलियों के आने की
उसे तो देना है पक्षियों  को 
कच्ची - कडवी,पक्की मीठी
निबोलियों का उपहार |

रचनाकार: संजय वर्मा "दृष्टि "

संपर्क: १ २ ५, शहीद भगत सिंह मार्ग 
मनावर, जिला- धार ( म. प्र. )
चित्र गूगल से साभार 

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