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Saturday, December 22, 2012

कविता: कुछ फोटो ऐसे भी

मैंने एक रचना सन 1981 में लिखी थी। मेरी ये इच्‍छा थी कि वो सम सामयिक होकर रह जाए.. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। हमारी व्‍यवस्‍थाएं और हमारी सोच में इन 31 सालों से ज्‍यादा समय के बाद भी ऐसा परिवर्तन नहीं आ सका है कि ये रचना सम सामयिक होकर रह जाती...अपितु यह कालजयी हो गयी लगती है...गंभीरता के साथ इसे पढ़ें और आज का वातावरण देखकर कुछ ऐसा परिवर्तन लाएं जो यक रचना एक सामयिक रचना होकर रह जाए.



1 comment:

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!