*चित्र गूगल से साभार*
कुछ दोहे उसके लिये, जो जीवन सौगात
आजीवन चंदा बना, मैं जिसका अहिवात
गले का मंगल धागा.
गले का मंगल धागा.
पत्नी धुँधली साँझ है, घर की फटती पौ
घर की अक्षत दूब है, दीया की है लौ
सुधा की पावन प्रतिमा.
पत्नी घर की गोमती, घर की अमृत धार
सिंचित करती ही रही, एक अमित परिवार
जुटाकर स्नेहित पानी.
पत्नी घर की नींद है,पत्नी घर की आग
रागों की है रागिनी, खटकों का खटराग
स्नेह की अविरल गंगा.
पत्नी पुलकित पूर्णिमा, पत्नी मावस रात
अँधियारी ही जानती, पत्नी की औकात
एक आँगन का दर्पण.
रचनाकार- श्री शिवानंद सिंह "सहयोगी"
संपर्क- "शिवभा" ए- 233, गंगानगर, मवाना मार्ग, मेरठ- 250001
दूरभाष- 09412212255, 0121-2620880
bahut sundar rachna ...
ReplyDeletepatni ka maan badhati ...!!
शुक्रिया अनुपमा त्रिपाठी जी.
DeleteAti Sunderpanktiyan
ReplyDeleteसंजीव भैया धन्यवाद.
Deleteवाह ! बहुत ही शानदार और बढ़िया|
ReplyDeleteरतन सिंह शेखावत जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
Deleteज्यातर कवियों ने पत्नी पर व्यंग्य बाण ही चलाये है.शिवानंद जी ने पत्नी के संबंध को गरिमा प्रदान की है,उनकी इस सोच को नमन करता हूँ.
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