सिलचर
में मानो जनसैलाब उमड़ आया । जनसैलाब शब्द भी बराक नदी के किनारे उमड़ी भीड़ के लिए
छोटा प्रतीत होता है । यदि इससे भी बड़ा कोई शब्द इस्तेमाल किया जाए तो अतिसयोक्ति
नहीं होगी । चारों ओर बस सिर ही सिर नजर आ रहे थे । सभी ओर बस जनसमूह था- पुल पर,सड़कों पर, नदी की ओर आने वाले रास्तों पर ।
ऐसा लग रहा था जैसे आज शहर की सारे मार्ग एक ही दिशा में मोड़ दिए गए हों। बूढ़े, बच्चे, महिलाएं और मोबाइल कैमरों से लैस
नयी पीढ़ी, परिवार
के परिवार चले आ रहे थे । सुबह चार बजे से शुरू हुआ यह सिलसिला कई घंटों तक जारी
रहा । इस तरह की भीड़ मैंने तब देखी थी जब वर्षों के इंतज़ार के बाद पहली ब्राडगेज
ट्रेन ने यहाँ का रुख किया था या फिर महालया पर।
विभिन्न उम्र,जाति और धर्मों के लोग खास
बंगाली वेश-भूषा में गाजे-बाजे के साथ बराक घाटी में देवी
दुर्गा के स्वागत के लिए एकत्रित हुए। बराक नदी की ओर जाने वाली सड़कें खचाखच भरी
हुई थीं और लोग ढोल-ढमाके के बीच देवी की आराधना में जुटे थे।इस दिन का सबसे बड़ा आकर्षण
आकाशवाणी से सुप्रसिद्ध गायक बीरेंद्र कृष्ण भद्र के चंडी पाठ का विशेष प्रसारण भी है। आकाशवाणी सिलचर द्वारा अपनी
स्थापना के समय से ही महालया के दिन इसका प्रसारण किया जा रहा है। सुबह 4 बजे से प्रसारित यह स्तुतिगान आज
भी लोगों को भाव-विभोर कर देता है।स्थानीय लोगों के मुताबिक महालया पर रेडियो पर बजने
वाला चंडी पाठ उनकी सुबह का अनिवार्य हिस्सा है और वे इसके बिना महालया की कल्पना
ही नहीं कर सकते। बताया जाता है कि कोलकाता (तब कलकत्ता) में 80 के दशक में एक बार महालया पर इस
पारंपरिक चंडी पाठ के स्थान पर कुछ ओर प्रसारित करने की कोशिश हुई थी तो लोगों ने
आकाशवाणी भवन पर पथराव कर दिया था।
वैसे
बराक घाटी ही नहीं,असम के कई शहरों , पश्चिम बंगाल,ओडिशा सहित कई राज्यों में आज
के दिन का खास महत्व है परन्तु असम की बंगाली बहुल बराक घाटी में महालया के परंपरागत
उत्साह और गरिमा की बात ही अलग है । वैसे उत्तर भारत के किसी शहर में यहाँ बताया
जाए कि लोग सुबह चार बजे से नहा-धोकर नदियों के तट पर हजारों की संख्या में जमा हो
जाते है तो शायद वहां लोग इस बात पर भरोसा न करें क्योंकि उनके लिए तो सुबह के चार
यानी आधी रात है। अब यह बात अलग है कि पूर्वोत्तर पर भगवान भास्कर खुद मेहरबान है
तभी तो यहाँ समूचे देश की तुलना में तक़रीबन घंटे भर पहले सूर्य के दर्शन हो जाते
हैं इसलिए यहाँ सुबह के चार भोपाल,लखनऊ या दिल्ली के चार से काफी अलग हैं।
सिलचर
में बराक नदी के घाट पर उमड़ी भीड़ को देखते हुए एक ओर जहाँ सामान्य व्यवस्था बनाने
के लिए सुरक्षा कर्मी मशक्कत कर रहे थे तो वहीँ, दूसरी ओर राज्य आपदा प्रबंधन बल
के जवान भी पूरीतरह मुस्तैद थे। स्वयं डिप्टी कमिश्नर और पुलिस अधीक्षक साडी
गतिविधियों पर नजर रखे थे।इसका अहम् कारण बराक पर बने सदर घाट पुल का जर्जर हो
जाना है। प्रशासन इस बात से डरा हुआ था कि पुल पर बढ़ती भीड़ के वजन से कहीं कोई
अनहोनी न हो जाए और त्योहारों का रंग फीका पड़ जाए। डिप्टी कमिश्नर एस लक्ष्मणन ने
तो लोगों से अपील भी की कि महालया के जोश में होश न खोएं, लेकिन इन सबसे बेपरवाह
आम लोगों के लिए तो यह पिकनिक का दिन था इसलिए शहर में सुबह से सजी खानपान की
दुकानों पर भी लोगों का ताँता लगा रहा । कहीं गरमागरम जलेबियाँ लोगों को ललचा रहीं
थी तो कहीं सिंघाड़े(समोसे) की खुशबू मुंह में पानी ला रही थी। बच्चों के लिए
खिलौनों की दुकाने तो युवाओं के लिए दिल के आकार के गुब्बारे। महालया के बहाने कई
युवा जोड़ों को साथ साथ समय बिताने और हाल-ऐ-दिल सुनाने का मौका भी हाथ लग गया। सड़क
पर लक्ष्यहीन भागती मोटरसाइकल और इत्र से महकते युवाओं की तलाशती नजरें महालया को
कुछ और ही रंग देने के लिए काफी थीं।
महालया दरअसल में एक संस्कृत शब्द है जिसमें महा का अर्थ
होता है महान और आल्या का अर्थ है निवास । महालया नवरात्र की शुरुआत को दर्शाता है
। महालया के दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है और उनसे प्रार्थना की जाती है कि
वो धरती पर आएं और अपने भक्तों को आशीर्वाद दें । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस
दिन मां दुर्गा धरती पर आकर असुर शक्तियों से अपने बच्चों की रक्षा करती हैं । ये
देवी पक्ष की शुरूआत के साथ पितृ पक्ष का अंत भी माना जाता है ।
एक अन्य मान्यता के अनुसार मां दुर्गा का भगवान शिव से
विवाह होने के बाद जब वह अपने मायके लौटी थीं और उनके आगमन के लिए खास तैयारी की
गई थी । इस आगमन को ही अब महालया के रूप में मनाया जाता है । वहीँ, बांग्ला
मान्यता के अनुसार महालया के दिन मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार उनकी
आंखे बनाते हैं इसे चक्षुदान के नाम से भी जाना जाता है । महालया के अगले दिन से
मां दुर्गा की नौ दिवसीय पूजा के लिए कलश स्थापना की जाती है ।
*(लेखक आकाशवाणी सिलचर में समाचार संपादक हैं )
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!