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Thursday, March 13, 2014

व्यंग्य : हे जनों के गण तुम्हारी जय हो



बुड़बक हुआ है का बे जे कहता है कि भारत में जनतंत्र है।  जनतंत्र  तो एक दिन होता है पाँच बरिस में  बकिया तो गणतंत्र हो जाता है।  कैसे हो जाता है ? अरे ससुर के नाती पी सी सर्कार के जादू नहीं देखे हो  जे दिखाता  है रुमाल और उसमे से फड़फड़ा के निकलता है कबूतर।पी सी सरकार  के जैसा हीबाक़ी  सब सरकार  जादू दिखाता  है। भक्क नील टिनोपाल कर के सफ़ेद कुरता पहिन के आता है चेहरा चाहे भले भकचोंधर जैसा हो पर वोट मांगता है तो चेहरा पर खिली खिली मुस्कराहट कि प्रियंका चोपड़ा भी शरमा जाये।  और जीत जाने पर मुंह इतना खुलता है कि सनी लियॉन भी घबरा जाये। 
हाँ तो हम कह रहे थे के बचवा भारत में जनतंत्र नही गणतंत्र है 545 गणो का तंत्र  ई जैसा चाहे वैसा मंतर मारें  और तंत्र चलावे। तुम कौन खेत के बथुआ हो। 
थाना पुलिस इन ही कि सुनती है। और तुम को उकड़ूँ बैठा के जब जी चाहे एक कट्टा बरामद दिखा कर थानेदार साहब पीछे खड़े होकर लिप्टन टाइगर मुद्रा में फ़ोटो खिचवा सकते है।  
अस्पताल में  इनका इलाज पहले होगा तुम कहो कि ज्यादा बीमार हैं तो का हुआ कौन वी आई पी हो।  वी आई पी नहीं जानते हो वी आई पी मतलब वेरी इंटेलिजेंट परसन  मतलब जादूगर ,,मदारी , और बाकि सब जमूरा।  तो होगा वही जो मदारी चाहेगा और जमूरा तो हाँ उस्ताद के अलावा का करेगा। मदारी खेल दिखाएगा और जमूरा खेल ख़तम होने पर पैसे मांगेगा।  
तो हम कह रहे थे कि अस्पताल में पहले उनका इलाज होगा और बड़े और ए  सी  वाले कमरे में होगा और तुमको जमीनो मिल जाए अस्पताल में तो गनीमत है।  राम खेलावन , शिवचरण और जुमरतीया  के मेहरारू तो सड़क पर ही बच्चा जनी थी न। 
कानपूर के नाम सुने हो?  कानपूर में डाक्टरवा सब समझ के बैठा था कि अस्पताल में उनका राज चलता है बुड़बक कही का सब। उलझ गया नेता जी से नेता जी इतना कहा बर्दाश्त करने वाले थे तुरत्ते फोन लगाए पुलिस के जनरल डायर  साहब के।  का कहते हो डायरवा मर गया , ऊधम सिंह गोली मार दिया।  कितना भोला है रे।  दसहरा पर हर साल फूंकते हो न रावण को।  फिर कैसे जिन्दा हो जाता है फिर फूंकते हो फिर जिन्दा हो जाता है अ सुनो पाहिले दस सर था अब अनगिनित है।
हाँ  तो हम कह रहे थे नेता जी तुरत्ते फोन लगाये डायर  साहब के कि आओ जल्दी और ई डाक्टर सब को इनका औकात बताओ और अगर औकात तरीके से बता दोगे  तो हम  यशश्वी भव  का आशीर्वाद भी देंगे।  फिर क्या था डायर  साहब तो पहले से ही थे दबंग थे और थाना में बैठ के वैसे ही सिटी बजा रहे थे तुरत्ते आये और इतना मारे इतना मारे कि अब सब डाक्टर कनफूजियाया  हुआ घूम रहा है कि सॉँस कहाँ से लें और समझ गए न। 
रेल में घूमे हो कभी ? का कहे भाड़ा जादा हो गया है।  जौना गण के चुने थे उनको तो मालूम है नहीं कि भाड़ा ज्यादा   है कि कम उनको फ्री कूपन मिलता है और तोहरी तरह जनरल डिब्बा में तो जाते नहीं हैं वो , जनरल डिब्बा में तो  वो भी नहीं जाता है जॉन माथा पर झाड़ू वाला टोपी लगाता है और टोपिया पर लिखवा रखे है कि मैं आम आदमी हूँ ,. आज कल लोग जान गया है कि ई न तो ई मैंगो है न पीपल ई कौनो विदेशी पौध है जो झांसा दे रहा जनता को खुद को खांटी देसी मैंगो और देसी पीपल बताकर।
वी आई पी बस में  भी नहीं जाता पर जाए न जाए वहाँ बस में भी अपने लिए एक सीट सुरक्षित रखवा लेता है। देखे हो न बस में आगे कि सीट पर लिखा रहता है सांसद /विधायक सीट  अगर कभी जाना पड़  गया तो तुमको उठा के भेज दिया जाएगा पीछे का लमहर सीट पर जहा तुम हर झटके पर ख़ुशी के मरे उछलते चले जाओगे और वी आई पी साहब सामने कि सीट पर मुस्कुराते हुए जाएंगे और उनके आगे लिखा होगा आपकी यात्रा मंगल मई हो  
ई देश गणो का है तुम्हारे जैसे निर्बल जनो  का नहीं।  तुम बस गण बनाओ और उनकी प्रशंसा  में गए जाओ 
हे जनो के गण ,हे हमारे अधिनायक तुम्हारी जय हो!

रामजन्म सिंह 
                                                               इटावा, उ. प्र. 

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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