बहुत लंबा है अभी सफ़र
कुछ देर तलक तो साथ रहो
राह में है मुश्किलें बहुत
कुछ कदम तो साथ रहो
जाने कितने आयेंगे मेहरो-माह
कुछ सहर तो साथ रहो
ढूँढ रहा हूँ ख्वाब नख्ले-खुश्क-सहरा में
कुछ देर तो निगाहों के साथ रहो
आयेंगीं अजनबी शहर की गलियाँ
सनम बन के मेरे साथ रहो
न निभा सको तमाम उम्र का साथ
कुछ पल तो साथ रहो |
रविश 'रवि'
फरीदाबाद
No comments:
Post a Comment
यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!