माना कि दिल ने फूलों से ज़ख्म खाये हैं
कश्ती भी साहिलों पे आके डगमगाई है.....
पर ऐ मेरे दोस्त.....
ज़ख्मों को न देख....
समुंद्र की लहरों को न देख....
ये फूल भी हमने उगाये हैं....
ये साहिल भी हमने बनाये हैं....
ज़िन्दगी का कारवां
न फूलों की खुशबू से चलता है...
न साहिलों पे आके रुकता है....
अपने सपनों की उड़ान को हवा दे.....
अपने सपनों की धार को तेज़ दे....
और.....फिर देख.....
ये फूल भी तेरे आँगन में खिलेंगे...
ये साहिल भी तेरे दर पे मिलेंगे |
रविश 'रवि'
फरीदाबाद
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