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Tuesday, November 12, 2013

कविता: रंग


लहराती जुल्फों में 
ढँक जाती तुम्हारे माथे की 
बिंदिया 
लगता है जैसे बादलों ने 
ढांक रखा हो चाँद को । 
कलाइयों में सजी चूडियाँ 
अँगुलियों में अँगूठी के नग से
निकली चमक 
पड़ती है मेरी आँखों में 
जब तुम हाथों में सजे 
कंगन को घुमाती हो । 
सुर्ख लब
कजरारी आँखों में लगे 
काजल से 
तुम जब मेरी और देखो 
तब तुम्हें केनवास पर 
उतरना चाहूँगा । 
हाथों में रची मेहंदी 
रंगीन कपड़ों में लिपटे 
चंदन से तन को देखता 
सोचता हूँ 
जितने रंग भरे तुम्हारी 
खूबसूरत सी काया में 
गिनता हूँ 
इन रंगों को दूर से । 
अपने केनवास पर उतारना 
चाहता हूँ तस्वीर 
जब तुम सामने हो मेरे 
पास हो मेरे । 
दूर से अधूरा पाता रंगों को
शायद उसमें प्रेम का रंग 

समाहित ना हो । 

संजय वर्मा "दृष्टि "

125, शहीद भगत सिंग मार्ग 
मनावर जिला -धार (म.प्र )
चित्र गूगल से साभार 


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