लहराती
जुल्फों में
ढँक जाती
तुम्हारे माथे की
बिंदिया
लगता है
जैसे बादलों ने
ढांक रखा हो चाँद को
।
कलाइयों
में सजी चूडियाँ
अँगुलियों
में अँगूठी के नग से
निकली
चमक
पड़ती है
मेरी आँखों में
जब तुम हाथों में सजे
कंगन को घुमाती हो ।
सुर्ख लब
कजरारी आँखों में लगे
काजल से
तुम जब मेरी और देखो
तब तुम्हें केनवास पर
उतरना चाहूँगा ।
हाथों में रची मेहंदी
रंगीन कपड़ों में
लिपटे
चंदन से तन को देखता
सोचता हूँ
जितने रंग भरे
तुम्हारी
खूबसूरत सी काया में
गिनता हूँ
इन रंगों को दूर से ।
अपने केनवास पर
उतारना
चाहता हूँ तस्वीर
जब तुम सामने हो मेरे
पास हो मेरे ।
दूर से अधूरा पाता
रंगों को
शायद उसमें प्रेम का
रंग
समाहित ना हो ।
संजय वर्मा "दृष्टि "
125, शहीद भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला -धार (म.प्र )
चित्र गूगल से साभार
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