आसमां पसरा है खामोश
चाँद भी चमका है तन्हा,
यूँ तो मिले हैं दिल कई
फिर भी दिल है तन्हा,
शाम होती है तेरी बज़्म में
सहर फिर भी है तन्हा,
हैं यहाँ दरो- दीवारें बहुत
फिर भी हर मकां हैं तन्हा,
सितारों की रोशनी है बहुत
रहगुजर फिर भी है तन्हा,
दिन तो गुजर ही जाता है
रात सरकती है तन्हा,
तै किया है सफ़र बहुत
मंजिलें फिर भी मिलीं हैं तन्हा,
बहुत बेगैरत है ये ज़िन्दगी
रूह भी तन्हा, जाँ भी तन्हा |
रविश ‘रवि’
फरीदाबाद
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