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Sunday, July 14, 2013

दुमदार दोहे

सरोकार अब छंद से, रखें न रचनाकार।
कविता बाजारू हुई, संयोजक बाजार।।
नौटंकी जमने लगी।
सोच रही है खोपड़ी, क्या है नक्सलवाद।
राजा घर मोती झरे, बदहाली अपवाद।।
कंकड़ मारे विषमता।
हल प्रमेय करता रहा, बीज गणित का प्रश्न।
श्यामपटों की श्यामता, रही मनाती  जश्न।।
हथेली रही चाकचक।
चलता फिरता आदमी, होता रहा फिरंट।
बिजलीघर से रातभर, निकला नहीं करंट।।
गरमी उबली उमस से।

शिवानन्द सिंह "सहयोगी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश 
दूरभाष: 09412212255

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