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Saturday, June 15, 2013

कविता : इच्छाएँ

बर्फ का गोला
रसीला रंग बिरंगा /बुड्डी के बाल
दोनों मुंह  मे रखते ही
घुल जाते हैं 
जैसे माँ का स्नेह
घुल जाता है बच्चों में |
बढती उम्र में
पोपले मुंह से
इन्हें ला कर देने का
कह नहीं पाती
सोचती है ? लोग क्या कहेंगे?
मगर हम तो भेड़ चाल में
लग जाते हैं कतार में
इन्हें खाने की चाहत में
बच्चो के संग बन जाते हैं बच्चे |
बुड्डी माँ को पूछते नहीं
उसकी  इच्छा क्या है ?
जीवित काया को नजर अंदाज करके
मृत शरीर की तस्वीरों पर
अर्पित करने लग जाते
इच्छाओं के फल |
ख्वाब में आकार कोई
कह जाता है -जीवित रहते हुए तुम
करते मेरी इच्छा पूरी
तो कुछ और बात रहती
किन्तु ......
क्या ये इच्छाओं का
दमन नहीं है |

रचनाकार: संजय वर्मा "दृष्टि "
संपर्क: १ २ ५, शहीद भगत सिंह मार्ग 
मनावर, जिला- धार ( म. प्र. )


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