अभी हाल ही में पांच साल की मासूम बच्ची के साथ दिल्ली में जो दर्दनाक हादसा
हुआ, वह वाकई में बहुत शर्मनाक है और सभ्य समाज के मुँह पर एक करारा तमाचा है. अब
अगर गुड़िया को बचाना है तो हमें अपना भेजा फ्राई करना ही पड़ेगा. आपको मेरी बात
बेशक अटपटी लगे, लेकिन यह समय की मांग है. हमारे भेजे में इतने कीटाणु भर चुके
हैं, वे इतनी आसानी से नहीं मरने वाले. जब तक हम अपने भेजे अर्थात मस्तिष्क को
फ्राई या कहें कि भूनेंगे नहीं तब तक ये कीटाणु जीवित रहेंगे और समाज को दूषित
करते रहेंगे. इन कीटाणुओं को मारने की एंटीबायोटिक दवा थी नैतिक शिक्षा, जो जाने
किस लोक में लोप हो गई. शिक्षा प्रणाली से नैतिक शिक्षा को गायब करने की पाश्चात्य
साजिश आखिर सफल हो ही गई और इसको अमली जामा पहनाया हिन्दुस्तानी संस्कृति को अपना
जानी दुश्मन मानने वाले तथाकथित सेक्युलर मानसिकता का लबादा ओढ़े माननीय महोदयों
ने. उनके लिए नैतिक शिक्षा से अधिक सम्मानीय मस्तराम नामक वह छद्म लेखक है, जिसकी
सड़क पर खुलेआम बिकने वाली सस्ती और अश्लील पुस्तकों ने पाठकों के मन मंदिर को कोठे
में परिवर्तित कर दिया है और उन्हें माँ, बहन, बेटी केवल अपनी हवस मिटाने का
माध्यम ही दिखाई देती हैं. मस्तराम के अतिरिक्त अश्लील फिल्मों को भी इन माननीय
महोदयों ने विशेष महत्व दिया है और ऐसी डर्टी फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से
भी सम्मानित किया जाने लगा है. अब आप ही सोचिए इन सब कारणों से मस्तिष्क में
कीटाणुओं की आबादी बढ़ेगी नहीं तो क्या घटेगी. समाज में बच्चे पैदा करना तो शुभ काम
माना जाता है और इसे ऊपरवाले की कृपा भी कहा जाता है, लेकिन माँ-बाप उन बच्चों की
ठीक से जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं. वे सोचते हैं, कि बच्चों की सारी जरूरतें पूरी
कर दो और अपनी जिम्मेदारी खत्म, लेकिन वे अपने बच्चे के मस्तिष्क में धीमे-धीमे बढ़
रहे कीटाणुओं की ओर ध्यान नहीं देते जो आगे समाज के लिए हानिकारक हो सकते हैं. यदि
बच्चों को बालपन में ही इन कीटाणुओं को मारने की नैतिक शिक्षा रुपी दवा मिल जाए तो
शायद दामिनी और गुड़िया ऐसे हादसों से बच पायें. एक बात ध्यान देने योग्य है, कि
वैसे तो लोग घर में कुम्भकर्णी नींद में सोते रहेंगे, लेकिन जब भी इस तरह का कोई
हादसा होता है तो वे जगह-जगह प्रदर्शन और तोड़-फोड़ करने लगते हैं तथा मोमबतियों को
इधर-उधर जलाते फिरते हैं. कोई उन्हें यह जाकर बताये, कि इससे समाज का कुछ भला नहीं
होनेवाला. भला होगा तो केवल मोमबतियाँ बनाकर बेचनेवालों का. इसके बजाय वे यदि एक
अभियान चलाकर जन-जन के भीतर की मोमबत्ती जा-जाकर चलाएँ तो फिर सार्वजानिक रूप से
मोमबत्ती जलाने की शायद नौबत ही न आए. अखबार में एक और घटना पढ़ी, कि विरोध
प्रदर्शन कर रही एक लड़की को एक ए.सी.पी. ने थप्पड़ मारा. इस मामले की तह में जाकर
देखें तो पता चलेगा कि उस लड़की ने ए.सी.पी. से कहा था कि अपनी लड़की यहाँ लेकर आओ
मेरे पुरुष साथी उससे बलात्कार करना चाहते हैं. अब बताइए उस लड़की के गाल पर थप्पड़
एक ए.सी.पी. ने मारा या फिर एक लड़की के बाप ने. मीडिया ने सिर्फ एक पक्ष दिखाया और
दूसरा पक्ष न दिखाने के अपने प्रण को पूरी जिम्मेदारी से निभाया. खैर इसमें उन सब
का दोष नहीं था. दोष था तो केवल कीटाणुओं का, जो भेजे में पलने का मजा ले रहे हैं.
मेरे विचार में नैतिक विचारों की भट्टी में भेजा फ्राई करना आज की जरूरत है. इस
काम को किए बिना भेजे में कीटाणु बढ़ते रहेंगे और समाज को दूषित करते रहेंगे. तो
आइए यदि गुड़िया या दामिनी को बचाना है, तो भेजा फ्राई करें.
रचनाकार: सुमित प्रताप सिंह
आज समाज में फैली इस तरह की घटना ने भारतीय समाज, संस्कृति और सत्ता को विचलित करने के साथ एक कलंक का धब्बा लगा दिया है .... एक तरफ भारत की संसद में स्त्री के आरक्षण पर बिल पास करा कर भारतीय सत्ताधीस अपना पीठ जरुर थपथपा रहें हैं लेकिन आज समाज के आधुनिक रूप ने स्त्री को किसी न किसी मोड़ पर कुछ कमजोर जरुर कर दिया है ....कोई भी कानून तब तक कामयाब नही हो सकता जब तक समाज स्वस्थ न हो !
ReplyDeleteक्या करें योगी जी जैसी सरकार वैसे ही जनता के बीच फ़ैल रहे विचार...
Deleteआज की ब्लॉग बुलेटिन रोती और सिसकती दिल्ली.. ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन...
Deleteआपकी इस प्रविष्टि क़ी चर्चा सोमवार [22.4.2013] केएक ही गुज़ारिश :चर्चामंच 1222 पर लिंक क़ी गई है,अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए पधारे आपका स्वागत है |
ReplyDeleteसूचनार्थ..
शुक्रिया सरिता भाटिया जी...
Deleteआज समाज की दुर्दशा के लिए माँ बाप भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपने लड़कों/लड़कियों को नैतिकता का बोध नहीं करवाया.. ऐसे कुत्सित विचारों के कीड़ों को तो जन्म लेने से पहले ही सफाया कर दिया जाना चाहिए..
ReplyDeleteशुक्रिया नूतन जी...
Delete
ReplyDeleteसही सोच ...!!
शुक्रिया सरस जी...
Deleteसही कहा भाई
ReplyDeleteशुक्रिया रऊफ जी @ जनता की खोज...
Delete