पिता तुल्य कोई नहीं, देवों का संसार
पिता, पिता है और है, उत्तमता का सार
मानसरोवर स्नेह का।
पिता बिना होता नहीं, माँ का कोई अर्थ
माँ उत्कलिका प्रेम की, पिता बिना असमर्थ
एक किनारा अर्थ का।
माँ पराग केसर अगर, पापा एक पराग
हँसता रहता हैं जहाँ, आपस का अनुराग
माली है वह चमन का।
पिता रक्ष अहिवात का, आंगन का वैदूर्य
सुरभित सिंदूर मांग का, एक चमकता सूर्य
जयमाला की सौम्यता।
गूढ़ हिमालय शांति का, मूँछों का ऐश्वर्य
संबंधों की डाल का, मनमोहक सौन्दर्य
उच्च निरूपक धैर्य का।
रचनाकार- श्री शिवानंद सिंह "सहयोगी"
संपर्क- "शिवभा" ए- 233, गंगानगर, मवाना मार्ग, मेरठ- 250001
दूरभाष- 09412212255, 0121-2620880
*चित्र गूगल से साभार*
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