राज की बात
राम राज की आशा में, बैठे हैं जो नादान हैं वो,
हालात वतन के वो न जानें, अज्ञानी है, अंजान है वो ।
मुखिया को अपने दल के जो अब राम बताया करते हैं,
उस दल का चमचा अपने को, कहता है कि हनुमान है वो ।
क्या उलझन वो सुलझाएंगे इस देश में रहने वालों की,
गैरों से नहीं जो लगता है, खुद अपने से परेशान हैं वो ।
वो मालिक भी बन सकते हैं इतिहास बताता है हमको,
जो कहते थे कुछ दिन के लिए इस देश के मेहमान हैं वो ।
बिन बारिश के जब खेतों में अंकुरित बीज नहीं होते,
वो मरुभूमि के खेत नहीं, लगता है के शमशान हैं वो ।
रचनाकार- श्री वीरेश अरोड़ा "वीर"
निवास- अजमेर, राजस्थान (भारत)
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