भारत है अपनी जान
अनेकता में एकता
जिस देश की पहचान,
हम उस वतन के वासी
भारत है अपनी जान।
हिंदू हों या मुसलमाॅ
हों सिक्ख या ईसाई,
मज़हब जु़दा-जु़दा है
दिल से सभी हैं भाई।
मिल-जुल के सदा गायें
सब एकता के गान,
हम उस वतन के वासी
भारत है अपनी जान....।
मंदिर की घंटियों में
अल्लाह की आवाजें़,
वाहे गुरू, यीशू के
सबके लिए दरवाज़े।
हो सबका भला सबके
दिल में यही अरमान,
हम उस वतन के वासी
भारत है अपनी जान....।
प्रहरी बना हिमालय
गंगा यहां इठलाती,
कश्मीर की फिज़ाएं
दुश्मन को भी लुभातीं
मौसम यहां का दिलकश
इसकी बढ़ाए शान,
हम उस वतन के वासी
भारत है अपनी जान....।
अशफाक, तिलक, बिस्मिल
औ’ बोस, भगत गांधी,
गौरव थे इस ज़मी के
आए थे बनके आंधी।
इनकी बहादुरी से
दुनियाॅ रही हैरान,
हम उस वतन के वासी
भारत है अपनी जान....।
पद्मिनी, रजिया जोधा
दुर्गा औ, लक्ष्मी बाई
अपने वतन की नारी
सारे जगत में छाई
करके वही दिखाया
मन में लिया जो ठान
हम उस वतन के वासी
भारत है अपनी जान
मातायें दिल की पक्की
मज़बूत हैं इरादे
अपने जिगर के टुकड़े
वो देश हित में लगा दें।
हो कोख चाहे सूनी
भारत का रहे मान
हम उस वतन के वासी
भारत है अपनी जान।
रचनाकार: श्री किशोर श्रीवास्तव
नई दिल्ली
देशप्रेम को प्रस्तुत करती बहुत ही सुन्दर रचना,आभार
ReplyDeleteस्वागत है
ReplyDeleteकिशोर जी देर आये दुरुस्त आये ........भारत अपनी जान ........एक मत से आपके साथ
ReplyDeleteबहुत बधाई।
ReplyDeleteप्रदीप शुक्ला
thanx to all..
ReplyDeleteNice poem..
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