चित्र शोभना वेलफेयर सोसाइटी से साभार |
जीवन में दुःख हैं बहुत
क्यों न ऐसा करें
हँस-हँस के जिएँ
मुस्कुरा के मरें
मौत आनी है वो तो आएगी
किससे भला रुक पाएगी
वो आती है तो उसे आने भी दो
अपना जलवा उसे दिखलाने भी दो
उसके आने के डर से हम क्यों डरें
हँस-हँस...
जीवन है कुछ पल का
आओ जी लें खुशी से
हो जायें दीवाने सब
अपनी इस हँसी के
रोनी सूरत को अलविदा हम कहें
हँस-हँस...
कोई कहीं रोते धोते मिलें
नैनों को अपने भिगोते मिलें
उनसे हँस के मिलें
उनसे मिलके खिलें
हमारे होते वो क्यों आहें भरें
हँस-हँस...
जो भूखा हो उसे खाना मिले
हर जीव को उसका दाना मिले
न बेघर भटके कोई धरा पर
सबको ही अब आशियाना मिले
हम मिलके थोड़ी कोशिश तो करें
हँस-हँस...
हमको जाना है ये तो पक्का है
न रुकना ये जीवन का चक्का है
जाने की बात सुन ए नासमझ
क्यों हुआ तू हक्का-बक्का है
मरने से पहले भला हम क्यों मरें
हँस-हँस...
जाएँ जब भी ये जग छोड़कर
अपनों से एक दिन यूँ मुँह मोड़कर
जीते जी हमको जितना भी मिला
उससे ज्यादा कर जाएँ औरों का भला
फिर मरके भी हम जग से न मरें
हँस-हँस...
फूलों के चारों ओर फैली
ReplyDeleteहरियाली ने
प्रश्न चिन्ह सा दिखया है, अक्सर
न होते ये हरे पत्ते
ये दूब
ये घास
कैसी होती तब
बगिया की तस्वीर ?
रंग-बिरंगे अलग-अलग फूल
हँसते-खेलते
बिखेरते सुगंध
पर क्या
उन्हीं से सज पाती हमारी बगिया ?
सब कुछ होते भी नहीं रच पाता
सच्चा घर-संसार
जब तक न फैला हो
आँगन में
सबको अपने स्नेह में समेटता
माँ का दुलार।
-चंदर धींगरा
चंदर धींगरा जी
Deleteनमस्कार!
यदि आपने यह रचना "शोभना काव्य सृजन पुरूस्कार" हेतु भेजी है, तो कृपया इसे shobhanawelfare@gmail.com पर अपनी फोटो, रचना की मौलिकता के वक्तव्य व अपने संक्षिप्त परिचय के साथ भेजें...
शुक्रिया