चेहरे पर मुस्कराहट चिपकी,मन अंदर से खाली-खाली
चारों ओर घुप्प-अंधेरा ,वो कहते आ गयी दिवाली I
कहाँ गये वो खील-बतासे,कहाँ गये वो खेल-तमाशे?
कमर-तोड़ मँहगाई ने, कर दी सबकी हालत माली I
कहने को हम साथ-साथ हैं, हो जाती हर रात बात है
फिर भी क्यों लगता है ? सब कुछ है जाली-जाली I
इन्टरनेट के इस दौर में, तू भी एक ई-मेल भेज दे
उसके पास भी समय कहाँ है ,चल बस हो गयी दिवाली I
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करवाते वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत रहिये.
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