चित्र गूगल बाबा से साभार |
विश्व मच्छर दिवस? चौंकिए मत, हर साल 20 अगस्त को दुनियाभर
में विश्व मच्छर दिवस मनाया जाता है. अभी तक वैलेंटाइन डे से लेकर फादर-मदर डे,नेशनल
यूथ डे,आर्मी डे,रिपब्लिक डे और स्वतंत्रता दिवस से लेकर पर्यावरण दिवस एवं बाल
दिवस जैसे तमाम राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय दिवसों के बारे में तो हम सभी ने खूब
सुना और पढ़ा है लेकिन मच्छरों का भी कोई दिवस मनाया जा सकता है यह बात मेरी तरह कई
और लोगों के लिए भी कल्पना से परे होगी. खासतौर पर उस मच्छर को समारोहिक तौर पर
याद करना जो मानव प्रजाति के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक है,बात समझ से परे लगती
है. यह कपोल कल्पना नहीं बल्कि वास्तविकता है कि हर साल दुनिया भर के सभी प्रमुख
देश अगस्त महीने की २० तारीख को मच्छरों का यह दिवस मनाते हैं. एक और मजेदार बात
यह है कि विश्व मच्छर दिवस न तो गिफ्ट और कार्ड आधारित बाजार की देन है और न ही
युवा पीढ़ी के विभिन्न नव-रचित पर्वों की तरह का कोई आधारहीन त्यौहार बल्कि इसका
आयोजन लगभग सवा सौ साल से हो रहा है.
दरअसल, इस दिन का नाम भले ही विश्व मच्छर दिवस है परन्तु इसको मनाने का
उद्देश्य मच्छरों को महिमामंडित करना नहीं बल्कि मच्छरों के खात्मे के लिए नई
दवाओं और नए तरीकों के निर्माण के लिए मिल-जुलकर प्रयास करना है.विश्व मच्छर दिवस
की शुरुआत 20 अगस्त 1897 को हुई थी जब भारत
में कार्यरत ब्रिटिश डाक्टर सर रोनाल्ड रास ने लंबे शोध और परिश्रम के बाद इस तथ्य
को खोज निकाला कि मनुष्य में मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी के लिए मादा मच्छर
जिम्मेदार है.आज शायद यह जानकारी उतनी महत्वपूर्ण न लगे लेकिन एक सदी पूर्व उस दौर
की कल्पना कीजिये जब हर साल लाखों-करोड़ों लोग मलेरिया के कारण जान गवां देते थे और
विशेषज्ञ यह समझ ही नहीं पाते थे कि इतनी बड़ी संख्या में लोग क्यों बेमौत मारे जा
रहे हैं. डाक्टर रोनाल्ड रास की इस खोज से मच्छरों के संक्रमण से निपटने के तरीके
और दवाएं खोजी जा सकी और मलेरिया पर नियंत्रण के उपाय शुरू हुए.
वैसे, अफ़्रीकी देशों के साथ-साथ भारत में भी मच्छर किसी समस्या से कम नहीं
हैं. हमारे वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञ मच्छरों से निपटने के नए-नए तरीके
तलाशते हैं और मच्छर स्वयं को इन तरीकों तथा दवाओं के अनुकूल ढालकर मानव प्रजाति
के लिए खतरे को कम नहीं होने देते. यही कारण है दशकों बाद भी मलेरिया पर पूरी तरह
से काबू नहीं पाया जा सका है. आज भी पूर्वोत्तर के राज्यों में हमारी फौज के
जांबाज़ सिपाहियों के लिए दुश्मन से ज्यादा खतरा मच्छरों से है. अब तो मच्छरों ने
अपनी बिरादरी और भाई-बंधुओं के साथ मिलकर जानलेवा बीमारियों की पूरी सूची बना ली
है जिसमें चिकनगुनिया, जापानी इंसेफ्लाइटिस और डेंगू प्रमुख हैं. इन बीमारियों के
कारण अभी भी दुनिया भर में लाखों लोग अपने प्राण गंवा रहे हैं. सिर्फ हमारे देश
में ही हर साल 40 से 50 हजार लोगों की मौत
मच्छरों के कारण हो जाती है और तक़रीबन 10 लाख लोग इन बीमारियों का शिकार बन जाते हैं.भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद
के अनुसार 2010 में 46,800 लोगों को मलेरिया लील
गया था. बच्चों के लिए तो मच्छर जानी दुश्मन से कम नहीं है.अफ्रीकी देशों में तो
हर 45 सेकेण्ड में एक बच्चे
की मौत मलेरिया के कारण हो जाती है इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर भारत
सरकार तक मच्छरों के खिलाफ़ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चला रहे
हैं. इन कार्यक्रमों से उम्मीदें तो जगी हैं लेकिन मच्छरों के साथ भ्रष्टाचार के
मिल जाने से उम्मीदों पर पानी फिरने में भी देर नहीं लगेगी. डाक्टर रोनाल्ड रास के
लिए विश्व मच्छर दिवस का मतलब मच्छरों से छुटकारा दिलाना था लेकिन आज सरकारी
योजनाओं के जरिये मच्छरों से निपटने में जुटे महकमों के लिए इस दिन का मतलब पैसा
बनाना हो गया है.शायद इसलिए तमाम अच्छी योजनाओं और प्रयासों के बाद भी मच्छर
फल-फूल रहे हैं और उसी अनुपात में योजनाओं
का बजट एवं बीमारियों का संक्रमण भी साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है.
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!