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Monday, July 9, 2012

जिंदगानी तू चलती जा


 चित्र गूगल बाबा से साभार  

चलती जा तू चलती जा, 
इन राहों पे उछलती जा
चल चला चल-चल जिंदगानी, 
दीप की तरह जलती जा
चाहे जैसे भी ले झूम, 
किसी राग में भी तू गा
हर तरह छूट है तुझको, 
कितने भी रंग बदलती जा
चल चला चल चल .....

रुकना मत किसी के रोके से, 
रहना सदा सावधान धोखे से
सफर आते हैं झोंके से 
इनसे बचके तू निकलती जा
चल चला चल चल .....

अन्धकार का चीर दे सीना, 
काली छाया में क्या जीना
लोभ है ठग अहंकार कमीना, 
तू मोह छलिया को छलती जा
चल चला चल चल .....

वक्त है थोड़ा काम है ज्यादा, 
करने से कटती बड़ी-बड़ी बाधा
बांधती चल मानव मर्यादा, 
बहके मत सम्भलती जा
चल चला चल चल .....
सूरमा वो ही जो चलता जाए,
खुद जागे दुनिया को जगाए
जला डाल पापों के साए, 
दुर्गुण-दोष निगलती जा
चल चला चल चल .....

रचनाकार – श्री सुरेन्द्र साधक

संपर्क - 9910328586

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भाव , बधाई .

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    1. सुरेन्द्र "साधक"July 14, 2012 at 12:50 PM

      धन्यवाद शुक्ला जी

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  2. Nice lines sir... I'll try to compose music for it.

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    1. सुरेन्द्र साधकJuly 14, 2012 at 12:52 PM

      धन्यवाद आशुतोष कुशवाहा जी. कृपया इसे कम्पोज करके हमें अवश्य सुनाएँ.

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  3. एक अच्छी रचना को पढ़ने का सुख मिला।

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    Replies
    1. सुरेन्द्र साधकJuly 14, 2012 at 12:52 PM

      धन्यवाद मनोज कुमार जी

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