चित्र गूगल बाबा से साभार
चलती जा तू चलती जा,
इन राहों पे उछलती जा
इन राहों पे उछलती जा
चल चला चल-चल जिंदगानी,
दीप की तरह जलती जा
दीप की तरह जलती जा
चाहे जैसे भी ले झूम,
किसी राग में भी तू गा
किसी राग में भी तू गा
हर तरह छूट है तुझको,
कितने भी रंग बदलती जा
चल चला चल चल .....
कितने भी रंग बदलती जा
चल चला चल चल .....
रुकना मत किसी के रोके से,
रहना सदा सावधान धोखे से
रहना सदा सावधान धोखे से
सफर आते हैं झोंके से
इनसे बचके तू निकलती जा
इनसे बचके तू निकलती जा
चल चला चल चल .....
अन्धकार का चीर दे सीना,
काली छाया में क्या जीना
काली छाया में क्या जीना
लोभ है ठग अहंकार कमीना,
तू मोह छलिया को छलती जा
तू मोह छलिया को छलती जा
चल चला चल चल .....
वक्त है थोड़ा काम है ज्यादा,
करने से कटती बड़ी-बड़ी बाधा
करने से कटती बड़ी-बड़ी बाधा
बांधती चल मानव मर्यादा,
बहके मत सम्भलती जा
बहके मत सम्भलती जा
चल चला चल चल .....
सूरमा वो ही जो चलता जाए,
खुद जागे दुनिया को जगाए
खुद जागे दुनिया को जगाए
जला डाल पापों के साए,
दुर्गुण-दोष निगलती जा
दुर्गुण-दोष निगलती जा
चल चला चल चल .....
संपर्क - 9910328586
बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर भाव , बधाई .
ReplyDeleteधन्यवाद शुक्ला जी
DeleteNice lines sir... I'll try to compose music for it.
ReplyDeleteधन्यवाद आशुतोष कुशवाहा जी. कृपया इसे कम्पोज करके हमें अवश्य सुनाएँ.
Deleteएक अच्छी रचना को पढ़ने का सुख मिला।
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज कुमार जी
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