आज हमारे पत्रकारों ने मीडिया की तस्वीर बदल दी है.आज एक टीवी एंकर धारावाहिक के मुकाबले ज्यादा ध्यान आकर्षित कर रहा है. ब्रेकिंग न्यूज़ का अर्थ बदल कर किसी की इज्ज़त उतार देना रह गया है.आज मीडिया की जिम्मेदारी भी सवालों के घेरे में है.मीडिया केवल उन्हीं समाचारों को प्रदर्शित करता है जो उसे टीआरपी रेटिंग में टॉप पर पहुंचा दे जबकि असलियत में मीडिया को केवल उन्ही समाचारों को प्रकाशित-प्रसारित करना चाहिए जो सभी के लिए उपयोगी और तर्कसंगत हो.हमें इस ओर भी धयान देना चाहिए कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अपनी जिम्मेदारी 'जवाबदेही' के साथ निभाए लेकिन आज हमारे पास भी इतना वक्त नहीं है कि हम अपनी इस जिम्मेदारी को पूरा कर सके. मीडिया ने इस संसार को एक छोटा द्वीप बना दिया है इसका यह अर्थ है कि मीडिया जानकारी देने में तो सफल है पर शायद इसमें कुछ क्षेत्रों की जानकारी का अभाव है जो बाकी विषयों से ज्यादा महत्वपूर्ण है जैसे गांव में अभी भी आधारभूत सुविधाएँ नहीं है. इन जानकारियों को क्यों हम महत्त्व नहीं देते. इनके स्थान पर मीडिया किसी क्रिकेटर की शादी को मुख्य समाचारों में जगह दे देगा लेकिन किसी किसान या बुनकर से जुड़े समाचार को वो तवज्जो नहीं मिलती. अगर किसी नेता के चुनाव प्रचार से जुडी खबर होगी तो उसके लिए मीडियाकर्मी सारे काम को दरकिनार करके उसके क्षेत्र का पूरा लेखा जोखा लेकर उसपर एक कार्यक्रम तैयार करके विशेष के तौर पर पेश कर देते हैं,लेकिन
आम जनता को यह कवरेज नहीं मिलता.
हम सभी को मीडिया के नए स्वरुप पर आश्चर्य तो अवश्य होता है पर देश के नागरिक होने के नाते हम भी अपना दायित्व ठीक से नहीं निभा रहे? मसलन मीडिया द्वारा दी जा रही ख़बरों के प्रति अपने विचारों से सभी को अवगत कराने में हम लापरवाह हैं. आज मीडिया में बलात्कार, क़त्ल, हत्या,लूट, मारपीट की ख़बरें ज्यादा आती है. मीडिया रक्षक से ज्यादा भक्षकों की खबरे बताने में ज्यादा अग्रसर है. दरअसल मीडिया एक पैड सर्विस बनता जा रहा है. अगर कोई खबर मीडिया में आने से रोकनी हो तो उस के लिए कुछ जेब ढीली कीजिये और आपका काम हो गया जैसे बहुत सारे उदाहरण है जैसे आईएएस अधिकारियों के घरों पर आयकर विभाग के छापों की खबर हो, चाहे आरुषि हत्याकांड हो, आदर्श घोटाला हो,चारा घोटाला हो,सीडब्लूजी घोटाला हो इन सभी में मीडिया ने अपनी छवि को और धूमिल किया है और वह सच्चाई को सामने लाने में असफल रहा है. आज मीडिया प्रभावशाली लोगों की हाथों की कठपुतली की तरह हो गया है.वो नेताओं के बेटे और बेटियों के विवाह का बड़े स्तर पर कवरेज करता है.फ़िल्मी सितारों की व्यक्तिगत जानकारियां भी अपने समाचारों में शामिल करता पर वह यह नहीं सोचता की इस खबर से ज्यादा महत्वपूर्ण खबर जनसामान्य से जुडी कोई बात हो सकती है. अगर कोई नेता गिरफ्तार हो जाता है तो मीडिया उसके सोने जागने से जुडी सारी बातें ब्रेकिंग न्यूज़ में शामिल करता है जिनकी वास्तव में कोई जरुरत नहीं है. आज मीडिया में अनेक वार्ता या विचार विमर्श से जुड़े कार्यक्रम आते है जिनमें कुछ विशेष मेहमानों को ही शामिल किया जाता है .ज्यादातर समय उन मेहमानों पर चीखता चिल्लाता एंकर कभी भी खोजी पत्रकारिता का विकल्प नहीं बन सकता. टीवी चैनल की रिपोर्टिंग टीम अख़बारों के मुकाबले छोटी होती है.लगभग सभी खबरिया चैनल घाटे में डूबे है. पेचीदा मामलों पर उनके पास विशेषज्ञ नहीं है. मीडिया को वास्तविक तौर पर अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा और उसे जन कल्याण से जुड़े उद्देश्यों के प्रति समर्पित रहना होगा वरना टीआरपी और कमाई की अंधी दौड़ उसे आम जनता के बीच कहीं का नहीं छोडेगी. दुनिया के सबसे बड़े मीडिया मुग़ल रूपर्ट मर्डोक का उदाहरण हमारे सामने है……….!
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